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पढ़े-लिखे, सभ्य !!!!!!!!!!
आज -कल ' वो ' कही दिख़ते नही।
50-60 साल पह़ले,
जो कभी मेरे बचपन में हुआ करते थे।
कितने अज़िब होते थे।
और उनका इंतज़ार भी होता था।
बुढ्ढी के बाल बेचनेंवाला......
उसकी जोरोंकी वो ललकारी,
" बुढ्ढी के बाल लेलो,
मिठ़े बाल लेलो "..........
लकडी बक्सें में ' सिनेमा ' दिखानेंवाला....
उसका वह़ भारी आवाज में गाना..
" राजा देखो, रानी देखो,
रानी का महाल देखो, राजा की कार देखो "..
5/10 पैसों से मझ़ा किया करतें थें....
और एक आया करता था,
" कल्ह़ईवाला ".....बर्तन को चमकानें वाला ...
छाता दुरुस्त करनेंवाला ,
डबा,ट्रंक,रिपेअर करनेंवाला,
नंदीबैल ले आनेंवाला,
' कडकलक्ष्मी ' वाला,
पुरानें कपड़ों के बदलें बर्तन देनेवाली
'बोहारिन ',
सुबह -सुबह भीख़ माँगनें वाले,
कितनें सारे आते थें, मेरें बचपनमें
कितने लोग और कितने चेह़रें
पता नहीं कहां चलें गयें ये लोग ......
कहीं दिखाई नहीं देते .......और ,
और वो लोग भी थें........
अनपढ़, गँवार....
सभ्यतासें दूर,बेख़बर......
वो थें ' जेंब कतरें ',और ' पाकिटमार ',
रेल या बस स्थानक ,
मंदिरों में, कहीं भीड़ में,
हुआ करतें थें वो,
आज कल कही नहीं
दिखाई देते,
ऐसा मेंरा वहम् था,
ये लोग तो आज भीं हैं ,
बदलें हुए चेंह़रें,या तो
मुखवटें पेह़नें हुए ,
कहीं बाज़ार में....
कभीं दुकान में...
मिलतें हैं ये लोग मुझें .....
आज भीं जेंबे काटी जाती हैं,
आज भीं पाकीट मारी जातीं हैं,
फ़र्क सिर्फ इतना हैं , के
उनके न जानें कितनें
बिज़नैस हैं और इंडस्ट्रीज़ ......
माॅल भीं ,मल्टि-नैशनल और
कभी-कहीं फाइव्ह स्टार भीं
कितनी अज़िब हैं ये दुनिया ,
और उतनेहीं अज़िब लोग ............
आज वो ' पढ़े-लिख़े ' हैं,और
वो " सभ्य "भी केह़लातें हैं ।।


©सुबोध जोशी
08-08-2020





© Subodh Digambar Joshi