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जीवन और भावनाएं
समग्र ब्रह्माण्ड परिवर्तनशील । प्रतिनियत परिवर्तन है स्वाभाविक ..शाश्वत। हम जितना सहजता से इसका स्वागत करेंगे, उतना ही सहज हमारा जीवन होगा ।
परन्तु कदापि मन और मस्तिष्क की जद्दोजहद कई सवालों को जनम देती है । हम सभी भावनाओं के बहाव में बह जाते है । भावनात्मक होना गलत नही .. क्योंकि भावनारहित जीवन अर्थहीन है , वो जीवन यन्त्र समतुल्य है ।
मगर ऐसे लोगों की काफी तादाद है जिनकी भावनाएं उनके विचारों से आगे चलती हैं। मनुष्य के विचार तेज़ होते है , वे बड़ी तेज़ी से बदल सकते हैं। मगर भावनाएं सुस्त होती है । वे बदलने में थोड़ा समय लेती हैं। इसलिए हम आहत हो जाते है ।
अपनी भावनाओं या विचारों को जबरदस्ती काबू में करने की कोशिश न करें , अन्यथा हम बाकी जीवन सिर्फ उसी के बारे में सोचते रहेंगे।
हम धीरे-धीरे अभ्यास करें भावनाओं को संयमित करने का और जीवन को भावनाओं के साथ ही नियंत्रण करने का ।