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आख़िर अपराध क्या है उसका ? ?

कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं। आज हमारे विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हम चंद्रमा पर भी अपना परचम लहरा रहे हैं पर अफ़सोस आज भी कुछ रूढ़िवादी लोग हमारे बीच निवास कर रहे हैं जिनकी मानसिकता इतनी घटिया है कि बताते हुए भी ज़ुबान लड़खड़ा जाए ।

ये कहानी भी एक ऐसे ही परिवार की है जो इस तरह के लोगों की मानसिकता से पीड़ित हैं और अंदर ही अंदर घुट रहा है।

रमेश अपने माता पिता की सबसे छोटी संतान है उससे बड़े दो भाई और तीन बहने हैं

उसके सभी भाई बहनों का विवाह बहुत समय पहले ही हो चुका था

रमेश के बड़े भाई के दो पुत्र और दो पुत्रियां है तथा बीच वाले भाई के भी तीन पुत्र और एक पुत्री है

रमेश के केवल दो पुत्रियां ही हैं जिसमें से एक की उम्र 18 वर्ष और दूसरी की महज़ 7 वर्ष है ।

रमेश के माता पिता को गुजरे भी लगभग 11 वर्ष हो चुके हैं।

चूंकि रमेश के कोई " पुत्र " नही है इसलिए उसके बड़े भाइयों ने बटवारे के दौरान रमेश को " बिसनेस " में कोइ हिस्सा नहीं दिया ।

और साथ ही सबसे ख़राब खेत (ऊसर और बंजर ज़मीन)और मकान भी टूटा फूटा ही दिया ।

फिर भी रमेश ने उसमें कोई ऐतराज नहीं किया

वो बेचारा चुपचाप मेहनत करता गया और कुछ ही सालों में उसने खुद का बिजनेस स्टार्ट कर लिया और एक नया घर भी बना लिया ।

अभी वो अपने नए घर में शिफ्ट भी नहीं हो पाया था कि फिर से उसके भाई उसका पुराना मकान (जिसे उसने मरम्मत करके सही करा लिया था )

हथियाने के नए नए तरीके आजमाने लगे हैं

जब उस बेचारे को इसकी भनक लगी तो वो एक बार फिर से टूट गया।

और अंदर ही अंदर खुद को कोशने लगा कि क्यों ईश्वर ने उसे एक पुत्र नहीं दिया ?

अगर आज उसका कोई पुत्र होता तो शायद उसे ये दिन नहीं देखना पड़ता ।

कहने को तो हम लड़का और लड़की में कोई भेदभाव नहीं करते हैं उन्हें समान अधिकार दिलाने का दंभ भरते हैं ।

पर क्या वास्तव में हम लड़कियों को उनका अधिकार दिला पाते हैं ?

हमारे इस शिक्षित समाज में ऐसा
व्यवहार क्यों ?

आख़िर क्यों ??





















© Rekha pal