परवरिश
जब पहली बार उसने अपनी बेटी को हाथ में लिया।तब उसने अपने आप से वादा किया। चाहे जो कुछ भी हो जाए इसे दुनिया की सारी खुशिया दूंगी। कभी भी समझौते की जिंदगी नहीं जीने दूंगी। मेरी तरह इसमे उसके पति ने भी उसका भरपूर साथ दिया। तीन साल के बाद उसे एक लड़का हुआ। दोनों बच्चों की परवरिश में उसने अपनी पूरी दुनिया ही छोड़ दी। खाना -पिना सोना सजना सवरना घूमना फिरना सब कुछ बच्चों में ही सिमट गया। दोनों को एक जैसी परवरिश बिना किसी भेदभाव के। उसका सपना था कि लड़की वकील और लड़का डाक्टर बने।
उसकी मेहनत रंग लाई जो सपना उसने देखा आज वो पूरा हो गया। लड़की एक बड़ी और सफल वकील बन गई।
लड़का भी सरकारी अस्पताल में नौकरी करने लगे। बहुत खुश थी वो आज हस्ते हस्ते दिन गुजरने लगे।
अब दोनों की शादी के लिए लडका देखने लगी। लडका अपनी ही साथी डाक्टर लड़की से शादी करना चाहता था क्योंकि प्यार करता था वो उसे खुशी खुशी उसने दोनों की शादी करवा दी।
लड़की के लिए भी अच्छे बडे घर से रिश्ता आया तो उसकी शादी भी बहुत धूमधाम से करी।
अब बेटे बहु भी अपने अलग घर में रहने चले गए उसे भी साथ में ले जाना चाहते थे पर वो नहीं गई। बेटा बेटी अपनी अपनी जिंदगी में आगे बढ रहे थे।
रह गई तो वो अकेली तन्हा फोन पर उससे सभी बात करते पर अकेलापन उसे काटने को दौडता बुढापे में किसी का साथ होना बहुत जरुरी हैं।
कुछ दिन बाद उसका जीवनसाथी उसका पति भी उसे अकेला छोड़ गया। अब तो जैसे उसमे जीने की चाह ही नहीं बची। बेटे बहु ने भी उससे मुँह मोड लिया काम का बहाना करके।
बेटी ने उसका साथ न छोड़ा बोली माँ आप मेरे साथ चलो। पहले तो उसने मना कर दिया पर दामाद की जिद ने आने पर मजबूर कर दिया।
वहाँ उनकी दोनों नातियो के साथ फिर से जीना सिख गई। उन्हें भी अपनी बेटी की ही तरह परवरिश दी।।
उसकी मेहनत रंग लाई जो सपना उसने देखा आज वो पूरा हो गया। लड़की एक बड़ी और सफल वकील बन गई।
लड़का भी सरकारी अस्पताल में नौकरी करने लगे। बहुत खुश थी वो आज हस्ते हस्ते दिन गुजरने लगे।
अब दोनों की शादी के लिए लडका देखने लगी। लडका अपनी ही साथी डाक्टर लड़की से शादी करना चाहता था क्योंकि प्यार करता था वो उसे खुशी खुशी उसने दोनों की शादी करवा दी।
लड़की के लिए भी अच्छे बडे घर से रिश्ता आया तो उसकी शादी भी बहुत धूमधाम से करी।
अब बेटे बहु भी अपने अलग घर में रहने चले गए उसे भी साथ में ले जाना चाहते थे पर वो नहीं गई। बेटा बेटी अपनी अपनी जिंदगी में आगे बढ रहे थे।
रह गई तो वो अकेली तन्हा फोन पर उससे सभी बात करते पर अकेलापन उसे काटने को दौडता बुढापे में किसी का साथ होना बहुत जरुरी हैं।
कुछ दिन बाद उसका जीवनसाथी उसका पति भी उसे अकेला छोड़ गया। अब तो जैसे उसमे जीने की चाह ही नहीं बची। बेटे बहु ने भी उससे मुँह मोड लिया काम का बहाना करके।
बेटी ने उसका साथ न छोड़ा बोली माँ आप मेरे साथ चलो। पहले तो उसने मना कर दिया पर दामाद की जिद ने आने पर मजबूर कर दिया।
वहाँ उनकी दोनों नातियो के साथ फिर से जीना सिख गई। उन्हें भी अपनी बेटी की ही तरह परवरिश दी।।