तेरी-मेरी यारियाँ ! (भाग - 16 )
दोपहर,,,, 12:00 बजे,, ( पार्क मे )
हरे-भरे पार्क में जहाँ सभी बच्चे खेल रहे थे। वही पार्थ एक पेड़ की छाँव मे बैठकर ना जाने कौन से ख्यालों मे खोया हुआ था।
की तभी उसकी आँखो पर कोई पीछे से आकर अपना हाथ रख देता है। वही पार्थ अपने हाथों से समझने की कोशिश करता है की आखिर यह हाथ किसका है वह जैसे ही समझ जाता हैं तो बोलता है।
पार्थ :- मुस्कुराते हुए,,,, निवान मुझे पता है तू ही है। तेरे और गीतिका के अलावा कोई भी नही है जिसके इतने छोटे हाथ हो।
निवान :- हँसते हुए,,,क्यों पार्थ इस पूरे गाँव मे हम तीन ही बच्चे है ?
पार्थ :- अरे बुद्धु,,,,, मैं दोस्तो मे बात कर रहा हूँ और कोई मेरा दोस्त नही है।
निवान :- अच्छा यह बात है,, तभी तूने मुझे इतनी जल्दी पहचान लिया।
पार्थ :- मुस्कुराते हुए,,,,हाँ यार।
निवान :- लेकिन पार्थ मैं गीतिका भी तो हो सकता था ?
पार्थ :- चोंकते हुए,,,, क्या बात कर रहा है,,, तू गीतिका कैसे हो सकता हैं।
निवान :- अपने सिर पर हाथ मारते हुए,,,,, भाई पहले यह बता तूने हाथों से ही तो पता लगाया ना की कौन है ?
पार्थ :- सिर हिलाते हुए,,,,, हाँ तो।
निवान :- तो मैं वही पूछ रहा हूँ की वो हाथ गीतिका का भी तो हो सकता था।
पार्थ :- हँसते हुए,,,,, नही यार वो बेचारी ठहरी छोटी सी लड़की तो उसका हाथ भी तो उसकी तरह छोटा सा होगा ना।
वह दोनो बात कर ही रहे होते हैं की तभी उनके ऊपर पीछे से पानी आ गिरता है। जिसकी वजह से वह घबरा कर अपनी जगह से उठ जाते हैं।
वह जैसे ही पीछे मुड़कर देखते है तो वहाँ गीतिका गुस्से मे खड़ी थी जिसको देखकर निवान और पार्थ एक साथ बोलते हैं। गीतिका,,,,, तू।
गीतिका :- गुस्से से,,,, तुम दोनो मेरी नकल क्यों कर रहे थे ?
निवान :- घूरते हुए,,,,, हमने तुझे ऐसा क्या बोल दिया।
गीतिका :- उँगली दिखाकर,,,, अच्छा ज्यादा बनो मत,, पार्थ तूने अभी यह कैसे कहां की मैं बेचारी छोटी सी लड़की हूँ।
पार्थ :- अपने कपड़े पूछते हुए,,,,जैसे तू बोलती है बिल्कुल वैसे।
निवान :- चल अब तू बता,, हमारे ऊपर पानी कैसे डाला तूने।
गीतिका बोतल का बचा हुआ पानी उनके ऊपर डालते हुए बोलती है।
गीतिका :- पानी फेंकते हुए,,, ऐसे डाला।
निवान :- लगता है तू ऐसे नही मानेगी। रुक तुझे अभी बताता हूँ। गीतिका की बच्ची,,,,,,,,
निवान के ऐसा बोलते ही गीतिका वहाँ से भागते-भागते बोलती है।
गीतिका :- भागते हुए,,,, पहले मुझे पकड़ कर दिखा फिर बात करते है।
उसके इतना बोलते ही पार्थ और निवान उसके पीछे भागने लगते है। काफी देर भागने के बाद निवान को याद आता है की वह गीतिका को देने के लिए कुछ लाया है और वह गीतिका से बोलता है।
निवान :- हाँफते हुए,,,,, गीतिका रुक मैं तेरे लिए कुछ लाया हूँ।
उसकी यह बात सुनकर गीतिका भाग कर निवान के पास आ जाती है और उससे बोलती है।
गीतिका :- खुश होकर,,,,,सच्ची निवान दिखा क्या लाया है।
निवान :- ठीक है,, चल मेरे साथ अभी दिखाता हूँ।
पार्थ :- निवान,,,,,,अब तू कहाँ जा रहा है।
निवान :- जहाँ तू बैठा था वही जा रहे है।
वह तीनो जैसे ही वहाँ पहुंचते है निवान पेड़ के पीछे से अपना बैग निकलता है और गीतिका से बोलता है।
निवान :- मुस्कुराते हुए,,, गीतिका तुझे गिफ्ट चाहिए,, तो पहले अपनी आँखे बन्द कर।
गीतिका :- आँख बंद करते हुए,,,,, निवान आज मेरा जन्मदिन है क्या जो तू मेरे लिए गिफ्ट लाया है।
पार्थ :- हँसते हुए,,,,,,जब तुझे ही नही पता तेरा जन्मदिन कब आता है तो उसको कैसे पता होगा गीतिका।
निवान :- टोंकते हुए,,,, तुम दोनो चुप रहोगे। कितनी बात करते हो।
पार्थ :- मुँह पर ऊँगली रखते हुए,,,,,,, ले चुप हो गए।
निवान जैसे ही गीतिका के हाथ मे गिफ्ट पकड़ाता है और गीतिका जैसे ही आँख खोलकर देखती है। वह खुश होकर उछलने लगती है और निवान से बोलती है,,,,,,
To Be Continue Part - 17
© Himanshu Singh
हरे-भरे पार्क में जहाँ सभी बच्चे खेल रहे थे। वही पार्थ एक पेड़ की छाँव मे बैठकर ना जाने कौन से ख्यालों मे खोया हुआ था।
की तभी उसकी आँखो पर कोई पीछे से आकर अपना हाथ रख देता है। वही पार्थ अपने हाथों से समझने की कोशिश करता है की आखिर यह हाथ किसका है वह जैसे ही समझ जाता हैं तो बोलता है।
पार्थ :- मुस्कुराते हुए,,,, निवान मुझे पता है तू ही है। तेरे और गीतिका के अलावा कोई भी नही है जिसके इतने छोटे हाथ हो।
निवान :- हँसते हुए,,,क्यों पार्थ इस पूरे गाँव मे हम तीन ही बच्चे है ?
पार्थ :- अरे बुद्धु,,,,, मैं दोस्तो मे बात कर रहा हूँ और कोई मेरा दोस्त नही है।
निवान :- अच्छा यह बात है,, तभी तूने मुझे इतनी जल्दी पहचान लिया।
पार्थ :- मुस्कुराते हुए,,,,हाँ यार।
निवान :- लेकिन पार्थ मैं गीतिका भी तो हो सकता था ?
पार्थ :- चोंकते हुए,,,, क्या बात कर रहा है,,, तू गीतिका कैसे हो सकता हैं।
निवान :- अपने सिर पर हाथ मारते हुए,,,,, भाई पहले यह बता तूने हाथों से ही तो पता लगाया ना की कौन है ?
पार्थ :- सिर हिलाते हुए,,,,, हाँ तो।
निवान :- तो मैं वही पूछ रहा हूँ की वो हाथ गीतिका का भी तो हो सकता था।
पार्थ :- हँसते हुए,,,,, नही यार वो बेचारी ठहरी छोटी सी लड़की तो उसका हाथ भी तो उसकी तरह छोटा सा होगा ना।
वह दोनो बात कर ही रहे होते हैं की तभी उनके ऊपर पीछे से पानी आ गिरता है। जिसकी वजह से वह घबरा कर अपनी जगह से उठ जाते हैं।
वह जैसे ही पीछे मुड़कर देखते है तो वहाँ गीतिका गुस्से मे खड़ी थी जिसको देखकर निवान और पार्थ एक साथ बोलते हैं। गीतिका,,,,, तू।
गीतिका :- गुस्से से,,,, तुम दोनो मेरी नकल क्यों कर रहे थे ?
निवान :- घूरते हुए,,,,, हमने तुझे ऐसा क्या बोल दिया।
गीतिका :- उँगली दिखाकर,,,, अच्छा ज्यादा बनो मत,, पार्थ तूने अभी यह कैसे कहां की मैं बेचारी छोटी सी लड़की हूँ।
पार्थ :- अपने कपड़े पूछते हुए,,,,जैसे तू बोलती है बिल्कुल वैसे।
निवान :- चल अब तू बता,, हमारे ऊपर पानी कैसे डाला तूने।
गीतिका बोतल का बचा हुआ पानी उनके ऊपर डालते हुए बोलती है।
गीतिका :- पानी फेंकते हुए,,, ऐसे डाला।
निवान :- लगता है तू ऐसे नही मानेगी। रुक तुझे अभी बताता हूँ। गीतिका की बच्ची,,,,,,,,
निवान के ऐसा बोलते ही गीतिका वहाँ से भागते-भागते बोलती है।
गीतिका :- भागते हुए,,,, पहले मुझे पकड़ कर दिखा फिर बात करते है।
उसके इतना बोलते ही पार्थ और निवान उसके पीछे भागने लगते है। काफी देर भागने के बाद निवान को याद आता है की वह गीतिका को देने के लिए कुछ लाया है और वह गीतिका से बोलता है।
निवान :- हाँफते हुए,,,,, गीतिका रुक मैं तेरे लिए कुछ लाया हूँ।
उसकी यह बात सुनकर गीतिका भाग कर निवान के पास आ जाती है और उससे बोलती है।
गीतिका :- खुश होकर,,,,,सच्ची निवान दिखा क्या लाया है।
निवान :- ठीक है,, चल मेरे साथ अभी दिखाता हूँ।
पार्थ :- निवान,,,,,,अब तू कहाँ जा रहा है।
निवान :- जहाँ तू बैठा था वही जा रहे है।
वह तीनो जैसे ही वहाँ पहुंचते है निवान पेड़ के पीछे से अपना बैग निकलता है और गीतिका से बोलता है।
निवान :- मुस्कुराते हुए,,, गीतिका तुझे गिफ्ट चाहिए,, तो पहले अपनी आँखे बन्द कर।
गीतिका :- आँख बंद करते हुए,,,,, निवान आज मेरा जन्मदिन है क्या जो तू मेरे लिए गिफ्ट लाया है।
पार्थ :- हँसते हुए,,,,,,जब तुझे ही नही पता तेरा जन्मदिन कब आता है तो उसको कैसे पता होगा गीतिका।
निवान :- टोंकते हुए,,,, तुम दोनो चुप रहोगे। कितनी बात करते हो।
पार्थ :- मुँह पर ऊँगली रखते हुए,,,,,,, ले चुप हो गए।
निवान जैसे ही गीतिका के हाथ मे गिफ्ट पकड़ाता है और गीतिका जैसे ही आँख खोलकर देखती है। वह खुश होकर उछलने लगती है और निवान से बोलती है,,,,,,
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