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संदेहजनक सुख
सुख और दुःख का एक चक्र है ये जीवन। इस चक्र में दुःख के उपरान्त सुख और सुख के उपरान्त दुःख की घड़ी चलती रहती है। ऐसी कईं बातें दुःख और सुख के बारे में चर्चा होती रहती हैं। पलभर के लिए थोड़ा सा ध्यान से सोचा जाए तो असली बात सामने आती है। पूर्णतः निष्पक्ष हो कर और केवल सत्य के सामने झुक कर जब दुःख और सुख की आकलन की जाती है तब कुछ चकित कर देने वाली बातें सामने आती है।

अगर सुख और दुःख का सबसे सरलतम अर्थ की बात की जाए तो एक ही अर्थ हैं - इच्छाओं की पूर्ति होने को सुख और न होने को दुःख का नाम दिया गया हैं। जब हमारे आकलन के अनुसार सारी घटनाएं घटती रहती हैं तब जो प्रफुल्लित भाव मन में प्रकाशित होता है उसे सुख कहा जाता है।

अकसर हम अपने आपको एक सुरक्षित परिसिमा में...