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गहरा जख्म
कितना भी गहरा जख्म कोई क्यों ना दे दें, उतना ही ज्यादा मुस्कुराने की आदत बनाओ। क्योंकि सच्चाई के मार्ग में चलने वाले शक्स कभी किसी से डरते नहीं, जो सच बोलने से डरते नहीं और सच सुनने से घबराते नहीं। इस दुनियां की भीड़ में अकेला ख्वाब हूं मैं। जो समझ ना पाए मुझे उनके लिए बस नासमझ हूं मैं। जो समझ जाए उनके लिए खुली पन्नों की डायरी हूं मैं। खुली आंखों से देखोगे तो बहुत खुश हूं मैं। दिल की गहराइयों से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूं मैं। कोई मतलब हो सबसे ये जरूरी तो नहीं। लापरवाह हमेशा खुद के लिए रहती हूं मैं और सबकी परवाह करने की आदत है मेरी। सबको अच्छी ही लगू ये जरूरी तो नहीं। अलग हूं शायद इसलिए गलतियों का भंडार हूं मैं। दुनियां की भीड़ में भेड़ चाल को चलना आदत नहीं मेरी। शांत रहकर अपने काम में मग्न रहना फितरत है मेरी। ये मेरी आदत है मेरी कोई कमजोरी नहीं। अगर रख सको तो एक यादगार निशानी हूं मैं खो दो तो सिर्फ एक यादगार पल हूं मैं। मेरी परेशानियां मुझ से खुद परेशान और हैरान है, कि मुझे परेशानी क्यों नहीं होती? अब इनको कैसे समझाए कि जब सब्र करना आ जाए तो कुछ भी छीन जाए, तब कोई परेशानी नहीं होती। सब्र वह औषधि है जो आपको कभी हारने नहीं देंगी। सब्र करना जिसको आगया यानी उसको जिन्दगी जीने का तरीका आगया। बनना ही तो चींटी की तरह बनो। नोट:- पा लेती है अपनी मंजिल कई बार गिर गिर कर। सूरज ने भी कई वर्षों में इस संसार में अच्छे और बूरे दिन देखे होंगे लेकिन बिना किसी भेद भाव के अपने ठीक उसी समय पर पूरी शक्ति और प्रकाश से निकलता है।(डॉ. श्वेता सिंह)
© Dr.Shweta Singh