...

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चाहत
भाग 4


अतीत की यादो से निकलना सच मे बहुत आसान होता है क्या....
वो भी तब जब जिससे प्यार हो उसके लिए हम ज़माने से लड़ रहे होते है...

संगीता की बाते जैसे, चिराग के लिए "ढनं "से पड़े हथोडे से थी...
उसने वही बैठी, काज़ल की ओर देखा..
काज़ल, की और उसकी नज़रे टकराई...

काज़ल को चिराग ने जब पहली बार देखा था, वो उसे उतनी ही खूबसूरत नज़र आई...

पहली बार मे ही चिराग को काज़ल
सफेद चिकनकारी के कुर्ते मे वो उसे सफाक हसीन हुस्न की मल्लिका लगी थी...
उसे ये याद आया, कि घरवालों की रज़ामन्दी के लिए, वो भी उसके लिए आये, अच्छे अच्छे रिश्ते ठुकरा रही है...उसे बेहद शर्मिंदगी का अहसास का अहसास हुआ...

सहसा.. चिराग को दो रास्ते नज़र आ रहे थे...

एक संगीता की ओर जा रहा था, और दूसरा काज़ल की ओर..
ये उसे तय करना था कि, उसे क़िस रास्ते जाना है...
चिराग ने गहन विचार किया...

संगीता, काज़ल और चिराग दोनों के ही बारे मे जानती थी, पर उसे एक आस थी, शायद चिराग उसकी ओर आएगा,
प्रेम मे जिसके लिए, जो एक बार भावना आ गई वो आ गई...
वो इंसान का साथ नसीब मे हो ना हो, वो भावना नहीं जाती...
जिस रास्ते पर चिराग के पीछे पीछे संगीता चल पड़ी थी, उस रास्ते से लौट कर आना भी संगीता के लिए आसान नहीं था...

तीनो ही अपने अपने प्यार को पाने की जद्दोजहद मे लगे हुए थे...
चिराग ने संगीता से कभी उससे प्यार है, ये नहीं कहा... पर वो संगीता की ओर आकर्षित था, इस बात से उसे इनकार भी नहीं था...!

आकर्षण और प्यार मे यही तो अंतर होता है...

चिराग समझ चूका था...
संगीता उसके लिए महज़ एक क्षणिक आकर्षण थी, काज़ल की दुरी उसे संगीता की ओर ले जा रही थी...!
पर,
संगीता के मन मे चिराग के लिए प्रेम का अंकुर फुट चूका था...!
उस बीज को फलने फूलने से कैसे रोका जाये ये सोच कर, चिराग ने संगीता से मिलने का फैसला किया...!

चिराग ने संगीता को, काज़ल और उसके प्रेम के बारे मे खुद अपने मुँह से बताया, साथ साथ माफी मांगी, कि जाने अनजाने मे वो उसकी ओर आकर्षित हो गया था, लेकिन अब वो संभल गया, है... उसकी जिंदगी मे जो जगह, उसने काज़ल को दे रखी है, वो जगह वो और किसी को दे नहीं सकता !

संगीता के लिए, ये सब सुनना किसी वज्रपात से कम नहीं था...
उसने खुद को संभाला और चिराग से विदा लेते उसे नये जीवन की शुभकामनायें दी...

इस तरह संगीता चिराग की जिंदगी से चली गई...

काज़ल, उनके ही रिश्ते मे थी...
जिस वजह से सबकी नाराज़गी बनी हुई थी, जिस रिश्ते मे थी वो ही इस कहानी का बड़ा विलेन बना हुआ था...

चिराग के बुआ का लड़का भी, काज़ल को पसंद करता था.. वो अच्छी जॉब पर था.. और घरवालों को भी ये रिश्ता काज़ल के लिए पसंद था....
समय ऐसा चल रहा था.. कि कभी भी काज़ल की शादी तय हो सकती थी...

पर चिराग और काज़ल दोनों ने ही हार नहीं मानी.. दोनों ने ही अपने धीर गंभीर स्वभाव का परिचय दिया...!
आखिर मे उनके प्रेम की जीत हुयी...!


चिराग ने अपने पापा से बात की...
और उन्हें काज़ल के पापा से... एक बार और मिलने का आग्रह किया...!

काज़ल के पापा को मनाने के लिए फिर एक बार चिराग के पापा ने उनसे बात करने की ठानी..

रिश्ते मे होने की वजह, गाहे बघाये इन सब की मुलाक़ात हो ही जाती थी...किसी ना किसी कार्यक्रम मे हो ही जाती थी.

एक ऐसे ही,
फॅमिली फंक्शन मे इन सब की मुलाक़ात इकट्ठे हो ही गई...

काज़ल की फॅमिली, चिराग की फॅमिली से थोड़ी दुरी ही मेन्टेन कर रही थी...

चिराग के पापा... काज़ल के पापा से बात करना चाह रहे थे...!
काज़ल के पापा, चिराग के पापा से बात करना टाल रहे थे....!
चिराग के पापा को ये बात बेहद नागवार गुजर रही थी....
उन्होंने भी... आव देखा ना ताव देखा, और सब के सामने काज़ल को अपनी "बहू " कह दिया !

अब सबको काटो तो खून नहीं....!!!!!

बेटे की ख़ुशी उनके लिए सर्वोपरि थी !

खूब हंगामा हुआ...!
पर, चिराग के पापा को इस समय यही उचित लगा... सो उन्होंने कर दिया...!

सारे रिश्तेदार ये बात जान गए..
चिराग के बुआ का लड़का भी वही था....
वो भी सकते मे आ गया...!

काज़ल के पापा अब क्या करते,
अब ना की कोई वजह ही नहीं थी...
आखिर उन्हें "हाँ "करनी ही पड़ी...

तय किया किया गया अगले इतवार चिराग के घर वाले... शगुन लेकर काज़ल के घर आ रहे है...

इसतरह चिराग और काज़ल एक हो गए...
और संगीता हमेशा के लिए उनके लाइफ से चली गई...!!!!