दाग
पढ़ियेगा जरूर।
ये कहानी कुछ यूं शुरू होती है की समाज में अच्छे व्यक्ति को कभी-कभी समाज भी ढंग से व्यवहार नहीं करता है।
एक व्यक्ति जो काफी स्वच्छ छवि, ईमानदार और अपने काम से मतलब रखने वाला, दूसरों की हरसंभव मदद करने हो, ऐसे व्यक्ति को दबंग, अमीर टाइप जैसे लोग उल्लू, मूर्ख घोषित कर देते चूंकि समाज हमेशा दबंग और रुपये वाले व्यक्ति की बात को सर्वेसर्वा मानता है फिर चाहे वो बात कितनी भी गलत क्यों ना हो।
वो एक कहावत है ना कि-
"चार लठ्ठ को चौधरी, पांच लठ्ठ को पंच।
जाके घर छः लठ्ठ हैं, ताको अंच ना पंच।।
अर्थात समाज भी केवल बलवान की सुनता है, फिर वो सही है या गलत कुछ मायने नहीं रखता।
हमारा समाज भी दो मूंह जैसी कुचलेंड़ (एक सांप की प्रजाति, जिसके दो मुंह होते हैं) जैसा है कल तक जो लड़का 2-3 लड़कियों के आशिकी में था, सिगरेट का वो शौकीन, बीयर बिना मन लगता और तो और IPL में सट्टेबाजी में महारथ हासिल थी, समाज के लोग उसे घर नहीं बुलाते थे।
अभी पिछली पुलिस की भर्ती में भगवान भरोसे सिपाही बन गया तो अब वही समाज के लोग उसे छाती से लगाये घूम रहा है, उसकी ऐसे जयजयकार करता है मानो कोई मसीहा हो। घर पर बुलाकर पूरा आदर सत्कार। अब वो समाज ये भूल गया कि वो पहले क्या था।
भाई एक बात कही जाती है कि खोये हुए संस्कार बड़ी मुश्किल से आते हैं और पायी हुई आदत उससे बड़ी मुश्किल से जाती है।
लेकिन हमारा समाज पट्टी बांध लेता है और सब भूल जाता है
वो क्या है कि ना समाज पद और पैसा गुलाम होता है।
धन्यवाद!
अगर लेख पसंद आये तो प्यार दें और एक प्यारा सा कमेंट अवश्य दें। 🙏
© Mr. Busy
ये कहानी कुछ यूं शुरू होती है की समाज में अच्छे व्यक्ति को कभी-कभी समाज भी ढंग से व्यवहार नहीं करता है।
एक व्यक्ति जो काफी स्वच्छ छवि, ईमानदार और अपने काम से मतलब रखने वाला, दूसरों की हरसंभव मदद करने हो, ऐसे व्यक्ति को दबंग, अमीर टाइप जैसे लोग उल्लू, मूर्ख घोषित कर देते चूंकि समाज हमेशा दबंग और रुपये वाले व्यक्ति की बात को सर्वेसर्वा मानता है फिर चाहे वो बात कितनी भी गलत क्यों ना हो।
वो एक कहावत है ना कि-
"चार लठ्ठ को चौधरी, पांच लठ्ठ को पंच।
जाके घर छः लठ्ठ हैं, ताको अंच ना पंच।।
अर्थात समाज भी केवल बलवान की सुनता है, फिर वो सही है या गलत कुछ मायने नहीं रखता।
हमारा समाज भी दो मूंह जैसी कुचलेंड़ (एक सांप की प्रजाति, जिसके दो मुंह होते हैं) जैसा है कल तक जो लड़का 2-3 लड़कियों के आशिकी में था, सिगरेट का वो शौकीन, बीयर बिना मन लगता और तो और IPL में सट्टेबाजी में महारथ हासिल थी, समाज के लोग उसे घर नहीं बुलाते थे।
अभी पिछली पुलिस की भर्ती में भगवान भरोसे सिपाही बन गया तो अब वही समाज के लोग उसे छाती से लगाये घूम रहा है, उसकी ऐसे जयजयकार करता है मानो कोई मसीहा हो। घर पर बुलाकर पूरा आदर सत्कार। अब वो समाज ये भूल गया कि वो पहले क्या था।
भाई एक बात कही जाती है कि खोये हुए संस्कार बड़ी मुश्किल से आते हैं और पायी हुई आदत उससे बड़ी मुश्किल से जाती है।
लेकिन हमारा समाज पट्टी बांध लेता है और सब भूल जाता है
वो क्या है कि ना समाज पद और पैसा गुलाम होता है।
धन्यवाद!
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