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खामोशी....
कभी कभी ज़िंदगी में ऐसा लगता है के जैसे हमारा खामोश रहना ही बेहतर है, अगर बात करते है तो बात और बिगड़ जाती है, या तो कभी बात करने का मन नही करता। क्युंकि अगर हम बात करते है तो सब कहते है की कुछ भी बात मत करो, बीच में बात मत करो। हमें हमारी खुद इज़्ज़त करनी चाहिए, कोई और हमें क्यों इतना बेवजह सुनाए।

इसलिए लगता है खामोश रहना ही बेहतर है। कभी हम थक जाते है सबका सुनते- सुनते सबको जवाब देते- देते, सबके सामने खुदको सही साबित करते- करते। फिर ऐसा लगता है जैसे हमारा खामोश रहना ही सही है। क्योंकि हम जो कहते है वो सुनते तो सब है, पर समझता कोई नहीं है।

हमें खुद को ही खुद से समझना है। कभी ऐसा भी होता है के काश हमारी भी ज़िंदगी में कोई होता जो हमारी बातों को समझता, हमारी भावना को समझता, हमें समझता। पर कभी अचानक से हमें लगता है की ये इंसान हमें समझ सकता ही और जब हम उसे अपना सारा दर्द बताते है, तो लगता है के जैसे मन का भोज हल्का हो गया हो।
धन्यवाद.......
© Glory of Epistle