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"उम्मीद" (अंतिम भाग)
विकल ने सरिता को देखा तो वो असहज सी कमरे के दूसरे कोने में खड़ी थी। माहौल को और रोमैंस से भरने के लिए उसने सरिता से कहा "जाओ जाकर गाउन पहन आओ"। सरिता ने आश्चर्य से उसे और फिर कमरे में चारों तरफ देखा। उसे समझ नहीं आया कि विकल किस गाउन की बात कर रहा है।

सरिता के पूछने पर उसने शादी की रात दिये हुए गिफ्ट में गाउन होने की बात कही। जब सरिता ने गिफ्ट खोला तो उसमें "ढेर सारी झालर वाला हल्के पीले रंग का चमकीला बेहद खूबसूरत गाउन" था। उसे देखते ही सरिता के चेहरे पर मानों सूरज की पहली लाली उतर आई थी।

बहुत खुशी और शर्म से सराबोर उस गाउन को लेकर सरिता बाथरूम में चेंज करने चली गई। तभी फिर से किसी ने रूम का दरवाज़ा खटखटाया। आहट सुनकर सरिता बाथरूम के अंदर ही रही और विकल ने दरवाज़ा खोला। सामने एक परिवार खड़ा था, जिनमें मियां बीवी और उनके दो बच्चे थे।

उस कमरे पर अपना अधिकार होने का दावा करते हुए वो लगातार विकल से बहस किए जा रहे थे। बहस की आवाज़ बढ़ते बढ़ते इतनी तेज हो गई कि आसपास के कमरों के लोग भी गलियारे में निकल आए और जमावड़ा सा लग गया। सरिता बाथरूम के अंदर से ही सारी आवाज़े सुनकर ग्लानि और संकोच से घिरी जा रही थी।

शोर सुनकर होटल स्टाफ और मैनेजर भी विकल के कमरे के बाहर इकट्ठे होने लगे। जब होटल स्टाफ ने चेक किया तो वाकई में वो रूम विकल का नहीं बल्कि उस परिवार के नाम बुक था, जो काफी देर से विकल से हुज्जत में लगे थे।

अपनी गलती मानते हुए स्टाफ ने विकल का बुकड रूम चेक किया तो उसके रूम में पहले से ठहरे हुए कस्टमर्स ने अभी तक चेकआउट नहीं किया था। स्टाफ ने विकल और सरिता को हॉल में बैठकर वेट करने के लिए कहा क्योंकि उस रात वहां कोई भी रूम खाली नहीं था।

बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलादों का एक ग्रुप(लड़के-लड़कियां) विकल के रूम में रुका हुआ था। जो नशे में इतने धुत थे कि न उन्हें अपने कपड़ों का होश था और न ही अपनी हालत का। रात के 2:30 बज चुके थे। पूरा होटल स्टाफ परेशान था। विकल के पास भी कोई ऑप्शन नहीं था दूसरी जगह जाने के लिए।

सरिता, विकल से कुछ भी नहीं बोली क्योंकि वह भी जान रही थी कि विकल परेशान है। लेकिन उसका सब्र का बांध अब टूट गया था। वो चुपचाप होटल से निकल सड़क पर पैदल ही चलने लगी है। उसकी चिंता में विकल भी उसके पीछे-पीछे होटल से निकल आया।

सड़क पर चहल-पहल कम थी। गहरे अंधेरे को बादल के नन्हे टुकड़े से छनती चांदनी आ रही थी। सरिता की आंखों से आंसू बहने लगे और वो कुछ कदम चलकर रुक गई। विकल लगातार उसे पीछे से आवाज़ दे रहा था पर उसे सरिता की हालत का ज़रा भी अंदाजा नहीं था।

सरिता को रुका देख विकल तेज़ी से दौड़ उसके पास आ गया। सरिता के चेहरे को देखने के लिए जब सामने आया तो उसकी बड़ी-बड़ी काली आंखों में चांद गहरा गया था। छनती चांदनी की चमक उसके चेहरे पर फैल कर और भी खूबसूरत हो रही थी। माथे के बल विकल को अपनी तरफ खींच रहे थे। उसके गोल गालों के सिरहाने पसिने की बूंदों में वर्षों की प्यास छलक रही थी। उसके कटीले नोंकदार गुलाबी होंठ गुलाब सदृश्य थे।

सरिता की उस झलक में विकल की सारी सीमाएं टूट गई। एहसासों और भावनाओं के समंदर ने उसके व्यक्तित्व को झकझोर दिया। सारे संयम और कायदे बेमाने लगने लगे। उसने बड़ी बेपरवाही से बीच सड़क पर ही आंसुओं से सराबोर सरिता का माथा चूम उसे गले लगा लिया। सरिता भी जब कुछ सहज हुई तो उस पल को जी लेना चाहती थी और अपने पहले प्यार की पहली निशानी को अपने भीतर छुपा लेना चाहती थी....।


समाप्त 🙏

© प्रज्ञा वाणी