सर्दियों में शाम के साढ़े पांच बजे
शाम के साढ़े पांच बज रहे थे, हल्का हल्का अंधेरा हो चुका था और बस स्टॉप पर भीड़, बस का इंतजार ऐसे कर रही था, बिल्कुल वैसे जैसे कभी लोग पिक्चर हाल के बाहर गेट खुलने का इंतजार किया करते थे ।
तभी बस आई । बड़ी मुश्किल से सबसे आखिर में कंडक्टर ने मुझे एक हाथ से धक्का देकर अंदर धकेलते हुए, अपनी दो उंगलियों को जीभ के बीच रखकर सीटी बजाई और बस...
तभी बस आई । बड़ी मुश्किल से सबसे आखिर में कंडक्टर ने मुझे एक हाथ से धक्का देकर अंदर धकेलते हुए, अपनी दो उंगलियों को जीभ के बीच रखकर सीटी बजाई और बस...