...

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*** तेरे बाहों का ***
" शरद रातें हैं इतनी
तेरे बाहों का सहारा चाहिए ,
सुलगना आज से मुझको ,
तेरे बाहों का किनारा चाहिए ,
सुलगते जिस्म की चल आ ,
इस वाक्य से वाकिफ हो जाये ,
तेरे बाहों का सहारा चाहिए ,
शरद रातें हैं इतनी
मेरी जिस्म को तेरी जिस्म की खुशबू चाहिए ,
खैर बात छेड़े को
हमने ये बात छेड़ी हैं ,
मेरे जिस्म को तेरी जिस्म की सहारा चाहिए ,
उल्फते बस ख्याल हैं ,
इस ख्याल सिर्फ हम जल ना जाये ,
आ प्यार कर मुझको जरा ,
ले खिंच ले बाहों में जरा ,
सुलगते जिस्म को कुछ और हवा दिया जाये ,
छु ले चुम ले भर लें बाहों में ,
इस तड़प को कुछ और भरकाया जाये ,
मेरे जिस्म को तेरे बाहों का कुछ और देर सहारा दिया ,
थक जाए चूर हो जाऊं ,
मेरी जिस्म को तेरे जिस्म का कुछ और सहारा दिया जाये ,
ये शरद रातें कमाल कर रही ,
तेरे बाहों के प्यार का कुछ और इंतजाम कर रही .

© Rabindra Ram