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अढ़ाई घंटे
हम स्टेशन पहुँचे तो अँधेरा हो चुका था। पहुँचते ही हमने आरक्षण-चार्ट पर दृष्टि डाली। लेकिन यहाँ भी दुर्भाग्य के ही दर्शन हुए। वेटिंग-लिस्ट में जिन भाग्यवानों के नाम मेरे दोस्त से पहले दर्ज थे उन का आरक्षण हो चुका था। लेकिन मेरे ही दोस्त को जाने किस जुर्म की सज़ा में लटका कर रखा गया था। दुर्भाग्य ने उसे और उस का साथी होने के कारण मुझे एक और तरह से भी परेशान किया था।

पुणे से आने वाली जिस गाड़ी में उसे जम्मू जाना था, वह अढ़ाई घंटे लेट थी। इस दूसरी परेशानी का असर उस से ज़्यादा मुझ पर पड़ा था। मैंने सोचा था कि अगर गाड़ी आदत से मजबूर हो कर लेट ही आना चाहेगी तो भी नौ बजे तक आ ही जाएगी। दोस्त को विदा करके मैं आसानी से दस बजे की आखिरी बस से अपने घर पहुँच सकता था। मगर अब वह बात नहीं रही थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि दोस्ती और लिहाज़ का चोला उतार कर दोस्त को उस की किस्मत के हवाले करके स्टेशन पर छोड़ जाऊँ, और खुद समय पर अपने घर लौट जाऊँ, या फिर मुद्दत बाद मिले दोस्त के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए तब तक स्टेशन पर ही ठहरूँ जब तक पुणे से आ कर गाड़ी उसे लेकर जम्मू के लिए रवाना नहीं हो जाती। अपने आप को अपनी किस्मत के नहीं, बल्कि अपने प्रभु के हवाले करूँ। यदि उस की इच्छा होगी तो मुझे सकुशल मेरे घर पहुँचा देगा। इच्छा न होगी तब भी मेरा सिर उस के आगे झुका रहेगा।
इस मुल्क का कुछ नहीं होगा-न ट्रेन वक्त पर आएगी न प्लेन टाइम पर टेक-ऑफ करेगा।" मेरे दोस्त ने यह बात तल्ख लहज़े में कही और बेंच से उठ कर प्लेटफॉर्म पर निरुद्देश्य घूमने लगा। मैं स्टेशन मास्टर के पास गया। उस ने मुझे तसल्ली दी कि ज़्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। गाड़ी आते ही हमें टी-टी, से बात करनी चाहिये। अगर उस के पास कोई बर्थ खाली होगी तो वह बर्थ हमें ही मिलेगी।

जिस प्रकार कोई मुर्गी चोंच में दाना ले कर चूज़े के पास जाती है उसी प्रकार मैं यह शुभ सूचना ले कर अपने दोस्त के पास गया। सुन कर उसे कोई प्रसन्नता नहीं हुई। उस के चेहरे पर उस की खास मुस्कुराहट एक बार फिर मेरा मज़ाक उड़ाने लगी, स्कूल मास्टर से ले कर स्टेशन मास्टर तक सब झूठी तालीम और झूठी तसल्ली देते हैं। इस मुल्क का कुछ नहीं होगा।

मेरा यह दोस्त कश्मीर का प्रसिद्ध और जाना-माना बुद्धिजीवी था, जो मानव मूल्यों के विषय में हुई एक ऑल इंडिया कौन्फ्रेंस में भाग लेने दिल्ली आया था। दो दिन की यह कौन्फ्रेंस कल शाम को ही संपन्न हुई थी। आज सवेरे वह होटल छोड़ कर मेरे यहाँ आया था और सारा दिन मुझे अर्पित किया था। सब से पहले हम इंडियन एयर लाइंस के दफ्तर गए थे। वहाँ उस ने रिक्वेस्ट कर टिकट वापस करके "रिटर्न एयर फेअर" के रुपये जेब में डाले थे। वहाँ से हम करोलबाग गए थे जहाँ से उस ने बीवी-बच्चों के लिए कपड़े और कुछ दूसरा सामान खरीदा था। करोलबाग से आ कर उस ने मेरे घर पर मेरे साथ कश्मीरी खाना खाया था और मेरी पत्नी के पकाने की बहुत तारीफ की थी। मेरे बच्चों के साथ भी वह खूब खेला था और इस बात के...