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कुछ पन्ने जिंदगी के किताब से: Part 3- page No. 14

11.30pm
28.7.2024
out of old #diary📓

....फिल्हाल induction का समय था...
दीप अभी 19 वर्ष की ही थी, 2nd year college के साथ साथ, अभी अभी उसने एक नई company join की थी, जहां का वातावरण काफ़ि positive सा लगा उसे...
चारों तरफ़ कुछ ऐसे विचार लगे थे जो उसके विचारों से काफ़ि मेल खाते थे। किंतु दीप नहीं जानती थी यह जगह उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग होने वाला हैं यहां से जीवन में बहुत कुछ उसे मिलने वाला था।

अब सभी new employes को floor पे ले जाया गया,
फ़िल्हाल induction का समय था...
दीप तो अपने मे थी, अपनी ही मस्ती में,पर नहीं जानती थी उस पर कोई गौर फरमा रहा हैं, उसे ना देख कर भी उसे देख रहा हैं, उसकी अदाओं को शब्दों में पिरो रहा है।
दीप training के दौरान lunch के समय अपनी डायरी (आदित्य) के साथ cafeteria में बैठा करती थी।
(हाँ Diary-आदित्य।
दीप अपनी diary को नाम दिया करती थी। जैसे वह कोई इंसान हो,दूर कहीं बैठे उसे वह सुन रहा हो और समझ भी रहा हो। )
आज भी वही एक कोणें की टेबल पर बैठ दीप लिख रही थी कोई कविता... उसी बैंच पर जहां अक्सर दीप बैठा करती थी...
अचानक ही एक लड़का दीप की table की ओर आया, उसका नाम निकुंज था।
निकुंज: College studies?
दीप: नहीं..ऐसे ही?
निकुंज: कविताएँ?
दीप: हाँ.. नहीं.., कुछ ख़ास नहीं... थोड़ा बहुत लिख लेती हूँ...
तभी निकुंज ने अपने bag में से भी एक काग़ज़ निकाला और दीप को पढ़ने दिया, वह भी कविताएँ लिखता था। दीप ने कविता पढ़ी तो, दीप को उनमें लिखे शब्द कुछ जानें पहचाने लगे... सुने सुनाएँ लगे.. यथार्थ यह सब शब्द वह कई बार सुन चुकी थी, उसके लिए बहुत अंजाने नहीं थे...।
दीप कुछ कुछ उन शब्दों को समझ चुकी थी, पर वही पुरानी आदत, ना-समझी का ढोंग करती, दिखावा करती, भागने की कोशिश करती।
उसे तो अपने 'आदित्य' का इंतज़ार था, वह तो किसी एक की हो सकती थी इस जनम में। हमेशा के लिए... वरना किसी की भी नहीं। (आदित्य वह अंजाना शख़्श था, जिसे दीप बचपन से खोज रही थी,
उसे सदा से लगता था उस जैसा ही कहीं कोई मौज़ुद हैं... जो भी उसका इंतज़ार कर रहा हैं, जानें क्यों उसको यह गहन विश्वाश था, के उस जैसा ही कहीं कोई मौज़ुद हैं, जो उसकी प्रतिक्षा में हैं, और वह भी उसे खोज रहा हैं.. वह एक दिन ज़रूर आएगा, ऐसा उसका विश्वास था, या अंतर वाणी या जानें क्या..)
दीप ने उसकी कविता पढ़ केवल इतना कहा, आपसे मिल कर बहुत अच्छा लगा 😊, हो सके तो यह कविता मुझे दीजिएगा। उसने यह कविता induction के दिन ही लिखी थी 😊..
कुछ ही दिनों बाद निकुंज ने वह कविता, एक सफ़ेद काग़ज़ पर कुछ ख़ास अंदाज़ में लिख कर दिया
उस लिखी कविता के नीचे सफ़ेद काग़ज़ पर काले रंग के कलम से कुछ shaded design सा बना हुआ था जिसके उपर कविता को लिखा था। दीप ने उस पर गौर ना किया, किंतु दीप ने तो शुक्रिया कह वह काग़ज़ ले लिया, किंतु दीप से अधिक curious तो पल्लवी थी (पल्लवी जो हाल ही में दीप की मित्र बनी थी, बड़ी ही प्यारी लड़की थी दीप जैसी ही थी..
दीप से बहुत अलग थी मग़र उसका मन भी बहुत निश्छल था वह भी शायरियाँ लिखा करती थी ) ..
पल्लवी ने उस कविता को पढ़ा और उसके नीचे लिखे design को हकीकत में उसनें समझा..
जिसमें चार शब्द लिखे हुए थे..दीप तो उन शब्दों को पढ़ कर भी अंजान बन रही थी...
वह कविता कुछ इस तरह थी...

It's only words,
'n' words are all I have
to take your heart away.
May be it's true,
the 1st time I saw you
came a feeling new
U make my life a vew
n my heart phu
with beauty ample
as chaste as an angel.
Your cute little dimples
bring on cheerful ripples.
Your hair
swaying in d air
your 32 wt smile
make me run an extra mile
you are my day's sunshine
ever smiling n ever fine
know not
&
How but now
I love u lot
your thoughts dribble my mind
your dreams cradle my heart.
Hope you be kind
& be my sweet heart.

यह कविता थी वो..
जो कविता के नाम पर एक proposal था हकीकत में
और वे shaded design में दिए संदेश के चार शब्द थे
" Words only for you. "
मग़र दीप ने जानकर नज़र अंदाज़ कर दिया। वह किसी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी,
जिसके भीतर प्रेम की गहराई से भावों से भरी एक कड़ी उमड़ आई।
और दीप अपने मन की एक कमज़ोरी जानती थी,
वह जानती थी, वह आसानी से प्रेम में पड़ सकती हैं,
इसीलिए एक चीज़ रट रखी थी "नहीं पड़ना हैं! "
वह जानती थी कोई सच्चा प्यार करने वाला यदि उसके करीब आ गया तो उसके लिए दुविधा खड़ी हो जाएगी, किसी के सच्चे प्यार को देख उसका मोम सा ह्दय पिघल जाएगा और मजबूरन उसे अपने सारे वादे और निर्णयों को बाजू कर देना होगा,
और दीप ऐसा नहीं चाहती थी।
दीप अपने जीवन में महज़ आदित्य को ही चाहती थी,
वह कौन हैं कैसा हैं वह नहीं जानती क्या करता हैं वह नहीं जानती। मग़र उसे भरोसा था..वो कहीं हैं और एक दिन वो ज़रूर आएगा..और उसकी आत्म उसे पहचान लेगी..
वह एक दिन ज़रूर खोजते हुए उसे आएगा..
उसे विश्वाश था!
जैसे जन्मों से उसी की ही प्रतिक्षा करती हो...
वह नहीं जानती थी वह कौन हैं!
मग़र उसे इसका अवश्य पता था ..के वह कौन नहीं हैं!
वह कौन हैं इसका राज़ तो महज़ कुदरत ही जानती थी...
मग़र दीप का दिल कहता और दीप की नज़र में वह एक ही हो सकता था.. उस्सा कोई दुजा ना हो सकता हैं..
और दीप की ऊर्जा अवश्य ही उसे पहचान लेगी उसे ये विश्वाश था...
वह इसलिए ही लोगों के proposal से भागती,
क्योंकि उसके मन मंदीर में तो एक ही देवता की जगह थी, और वह कोई आम नहीं हो सकता महज़ महादेव ही.. उसकी जगह ले सकता हैं और जो उसके मन मंदीर का देवता हैं वही उसके प्यार का भी देवता हैं जिसकी पूजा दीप अपने प्रेम के चढ़ावे से करती।
( थोड़ी old fashioned बात मालूम होती हैं,
मग़र दीप ऐसी ही थी modern glamorous कपड़ो में बहुत ही प्राचीन। और प्रेम उसके लिए पूजा ही थी,
और बिना भक्ति के पूजा नहीं हो सकती इसीलिए उसके लिए प्रेम और भक्ति एक ही थे 🙂)
वह मन ही मन किसी अंजान सूरत को समर्पित थी
और इसीलिए किसीे इंसान के करीब आने से भी वह डरती कहीं किसी ग़लत इंसान को अपना आदित्य ना समझ ले और वह सच्ची भावनाओ की कदर करती थी इस लिए भी वह डरती थी।
बस यही कारण था की वो ऐसे मौको से भागती,
हालाँकि यह उसके लिए बहुत ख़ुशी का विषय था की
वह किसी में प्रेम भाव का कारण बनी।
दीप अपने दोस्तों के लिए कविताएँ लिखा करती थी,
उसके कई मित्र उससे ख़ुद भी कविताएँ लिखवाते थे अपने लिए, और आज किसी ने उसके लिए कविता लिखी,
वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी,
के वह किसी के कविता के सृजन का भी कारण बन सकती हैं, वह इस काबिल भी हो सकती हैं के कोई उसके लिए कविता लिखे।
वह महज़ इस छन के लिए आभारी थी।

फ़िर कई दिनों बाद..

निकुंज दीप से कुछ कहना चाहता था...
आज जब वह दीप को मिला...
निकुंज: दीप मुझे तुम्हें कुछ बताना हैं
दीप: हाँ बोलो
निकुंज: " आमी तोमके भालो बाशी " ( इसका हिंदी व अग्रेज़ी अनुवाद था "मैं तुमसे प्यार करता हूँ" या " I Love you")
दीप ने इस बार भी इस बात को "वाह" कह कर नज़र अंदाज़ कर दिया
दीप: " Oh great you have learnt bengali.. wow! really great.. keep it up.... ok let me go now.. I am actually getting late login का time हो गया."

कुछ दिनों बाद canteen से lunch कर लौटते हुए
निकुंज ने दीप को फिर एक कविता भेंट की,
जो दीप के लिए लिखी गई थी...
जो कुछ इस तरह थी....
To be wid you
would be a dream come true.
In my dreams
we have ice-creams
long walk
sweet talks
cool rides
deep sea drive
in fact I live many lives
you are my rose
you are my lily
it sounds silly
but that's how love grows
ur glance, ever by chance
holds me for an instance
& I would behold that stance.
No matter
for me you are everything
that matter
let's not make it later.

दीप ने यह कविता उसी के समक्ष पढ़ी
कविता तो बहुत अच्छी लगी मन ही मन उसे thanks कह रही थी, पर उसके भावों को भी जानती, कहीं वह और अधिक गहरे ना हो जाए और अपना डेरा ना जमा ले..
वरना फ़िर दीप को दुःख होगा क्योंकि वह उसकी तो हो नहीं सकती थी।
दीप इस बात को छिपाने के लिए के वह उसके भाव को समझ गई हैं, वह हड़बड़ी में कुछ ऐसा बोल गई जो उचित ना था।
दीप: तुम कविताएँ बहुत ही अच्छी लिखते हो, publish करने के लिए क्यों नहीं भेजते!
जबकि वह कविता तो निकुंज ने दीप के लिए लिखी थी... उसे ज़रूर बुरा तो लगा होगा,
मग़र दीप क्या करती उसे आभास तो था वह कुछ ग़लत बोल गई मग़र उसी वक़्त मन ही मन उसने निकुंज और ईश्वर से माफ़ी मांग ली और उस कविता के लिए शुक्रिया भी कहा ईश्वर और निकुंज दोनों के प्यार के लिए शुक्रिया कहा।
( दीप भावों और प्रेम की इतनी कदर करती थी-)
वह समझती किसी के लिए strong feeling या प्रेम भाव आना ग़लत नहीं हैं हाँ उसे अगर ग़लत नज़रिया दिया जाएं या ग़लत नज़र से देखा जाए तब वह ग़लत हैं feelings तो आपके लिए किसी में भी आ सकती हैं, यह normal हैं।
खैर....
घर आकर दीप ने निकुंज की ये प्रेम भरी भेंट- दोनों कविताओं को प्यार से अपनी diary में लगा दिया
और इस बारे में अपने diary आदित्या को बताया।
वह आदित्य से कुछ छिपाना नहीं चाहती थी।
जब वह आए तो उसके जीवन की ये डायरी केवल
वो ही पढ़े। वह मेरे जीवन का कोना कोना जानता हो, कुछ छिपा ना हो उससे।
यह मेरे उस बच्चे मन की उस नादान 19 वर्षीय लड़की की समझ थी।
खैर ऐसा कोई शख़्स कहीं था या हैं
यह शायद दीप की महज़ कल्पना थी...
अब उमर निकल गई कल्पनाओं के जगत में खेलने की...
इसीलिए जग जाहिर कर देती हूँ अपने किताब के पन्नों को।
अब तो कल्पनिक जगत से बाहर आ जाना चाहिए मुझे।

खैर महज़ यह कुछ पन्ने नहीं ऐसे कई और इससे भी खूबसूरत खूबसूरत कहानियाँ मेरे जीवन की पन्नों से जुड़े...और मैं सबकी बहुत आभारी हूँ...
जो प्यार मुझे लोगों के ज़रिए मिला परमात्मा की इस कृपा की मैं बहुत आभारी हूँ...
मग़र सभी लिखने जाऊँगी तो महज़ लिखती ही चली जाऊँगी... कलम रुकेगी नहीं मेरी
खैर कभी मन किया यदि mood बना तो लिखूँगी अपनी किताब के कुछ पन्ने और।

शायद परमात्मा को मेरे कल्पनिक कथा का भविष्य मालूम था...
इसीलिए परमात्मा ने टुकड़ो टुकड़ो मे ही प्यार दे दिया मुझे, लोगों के ज़रिए ताके कल को मुझे शिकायत ना हो जीवन से या किसी से भी।
किसी से कुछ, किसी से कुछ मिल गया बस बहुत मिल गया.. बस युंही जिंदगी ये पूरी हो गई... 🙂 और क्या चाहिए इस जिंदगी से I am content with life, content with my self, no complaints, no regret nothing.
I had a really blessed and fulfilled life.
और मैं सदेव आभारी🙏 हूँ सबकी, जो कोई भी इस जीवन से गुज़रा। सबकी आभार🙏 हूँ। जिसने जो दिया उसके लिए।



© S🤍L