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shaam
शाम की रोशनी किसी की नहीं होती ... ना चाँद ना सूरज ...किसी की नहीं ..शायद वह इन सबसे परे है , और यही बात शाम की रोशनी में पढ़ने को मोक्षदायी बना देती है ..इन पिक्सलों की तरह चाँद और सूरज भी आज एक दूसरे दूर थे ...

नाराज़ नहीं किन्तु दूर ,बहुत दूर..कितना दूर ?
धरती गोल है , इसलिए जो जितना दूर जाता है वो उतने ही पास आता जाता है ..

जैसे अगली शाम ,या जैसे “ तुम ” , वैसे सुना है सुबह भी कुछ ऐसी होती है बस सुबह

“ शाम ” की तरह नशा नहीं करती ...!!