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सपना
ये यादें, मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गुनहगार हैं। वो, आना नहीं चाहता, और ये, जाति नहीं।
वक़्त आया सपने से आने का, हमें सपने को चोर के, हकीकत में जीने का। सपने तो सपने ही होते हैं, वक्त आने पे खट्टम हो जाते हैं। एहसास रह जाते हैं, जो जीने के लिए काफ़ी हैं। दिन, माहे, गुजर गए, अब बहुत दूर चले गए। अपने दिल को समझ लेंगे, सपना ही तो था, फिर टूट गया।
खजाना खट्टम हो गया तिजोरी का। लेकिन दिल के खज़ाने में अभी भी बहुत है।
© shachi nigam