जवां होते निर्लज बच्चे.. ना ना जी युवा... एक यात्रा वृत्तान्त
बात अभी कल की ही है.. पुरी जा रहा था परिवार सहित कहने का मतलब हमदोनों के साथ बेटा भी था...
हम टाटानगर से पुरी जानें के लिए कलिंगा उत्कल जो हरिद्वार से चल कर पुरी तक जाती है में सवार हुऐ, अचानक प्रोग्राम बना था तो एसी में बर्थ ना मिल पाया जुगाड भिड़ा स्लीपर में बर्थ ली जी.. और चल दिए बाबा जगन्नाथ जी के पास.. दर्शनार्थ... पूरे भक्ति भाव से लवलेज हो कर...
परंतु ट्रेन छुटने के कुछ समय पहले ही तीन लड़कियां आई और हमारे सामने वाली बर्थ पर अपना बता बैठ गई खेर वो उनकी थी भी.. लड़कियां सम्भ्रांत परिवार से थी ऐसा उनके पहनावे और बातचीत से लग रहा था.....
हम टाटानगर से पुरी जानें के लिए कलिंगा उत्कल जो हरिद्वार से चल कर पुरी तक जाती है में सवार हुऐ, अचानक प्रोग्राम बना था तो एसी में बर्थ ना मिल पाया जुगाड भिड़ा स्लीपर में बर्थ ली जी.. और चल दिए बाबा जगन्नाथ जी के पास.. दर्शनार्थ... पूरे भक्ति भाव से लवलेज हो कर...
परंतु ट्रेन छुटने के कुछ समय पहले ही तीन लड़कियां आई और हमारे सामने वाली बर्थ पर अपना बता बैठ गई खेर वो उनकी थी भी.. लड़कियां सम्भ्रांत परिवार से थी ऐसा उनके पहनावे और बातचीत से लग रहा था.....