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जवां होते निर्लज बच्चे.. ना ना जी युवा... एक यात्रा वृत्तान्त
बात अभी कल की ही है.. पुरी जा रहा था परिवार सहित कहने का मतलब हमदोनों के साथ बेटा भी था...
हम टाटानगर से पुरी जानें के लिए कलिंगा उत्कल जो हरिद्वार से चल कर पुरी तक जाती है में सवार हुऐ, अचानक प्रोग्राम बना था तो एसी में बर्थ ना मिल पाया जुगाड भिड़ा स्लीपर में बर्थ ली जी.. और चल दिए बाबा जगन्नाथ जी के पास.. दर्शनार्थ... पूरे भक्ति भाव से लवलेज हो कर...
परंतु ट्रेन छुटने के कुछ समय पहले ही तीन लड़कियां आई और हमारे सामने वाली बर्थ पर अपना बता बैठ गई खेर वो उनकी थी भी.. लड़कियां सम्भ्रांत परिवार से थी ऐसा उनके पहनावे और बातचीत से लग रहा था..
अभी ट्रेन को चले कुछ चंद पल ही बीते थे कि दो लड़के भी आ गए शेष दो सीटें उन्ही की थीं... वे पांचों इस प्रकार बाते कर रहें थे जैसे पूर्वपरिचित थे..
रात के 10:30 बज रहे थे सबने मिल खाना खाया और फिर दौर शुरू हुआ हल्के फुल्के मज़ाक का.. वे उन तीनों लड़कियों में से दो के ब्वॉयफ्रेंड थे.. अमूमन लड़कियां कुछ अंगो के स्पर्श हो जानें से असहज सी हो जाती हैं परंतु यहां दास्तां कुछ और थी..
एक लंबा समय बीत गया ट्रेन में सफर करते हुऐ पर ये कुछ हम दोनो मियां बीबी अलग देख रहे थे... खेर हमारे बीच में कूदने का कोई औचित्य ही ना था सो हम मौन ही रह तमाशा देख रहे थे और सोच रहे थे की समाज में जो लड़कियों के साथ बदतमीजी होती है उसमे लड़कियां भी बराबर की जिम्मेदार होती हैं..
अभी हम दोनो ये बाते कर ही रहे थे की एक लड़का और लड़की जिनकी ऊपर की बर्थ थी अजीब ही खेल कर रहे थे.. लड़का लड़की को सीट पर बैठा और उसके कंबल में घुस उससे सट लेट गया..
तभी उस लड़की की मम्मी का फ़ोन आया और वो पूरे ज़िम्मेदारी भरी स्वर में बोलीं नीचे वाली लड़की का नाम ले की "हां मम्मी अमुक लड़की मेरे नीचे वाले बर्थ पर है और एक अंकल आंटी भी हैं आप चिंता न करें.. उसकी मम्मी भी बेफिक्र हो गई और ये तो बेफिक्र हो ही चुकी थी.."
हम दोनों समाज को तरक्की की राह में बढ़ते हुए.. देख रहे थे..
की तभी बीच के बर्थ वाली लड़की आवाज दे पुछती है " अरे यार तुम लेट कैसे लिए एक ही बर्थ पर.. मुझे तो इतना सट के लेटने बाद नींद ही ना आती है... "
नींद तो हमारी भी गायब हो गई थी हमारी भी एक बेटी हैं और एक बेटा.. है राम.. ये कैसे तरक्की कर रहा है समाज निर्लज्ता की सारी हदें पार कर अपना सब खुद ही स्वाह कर खुद को स्वतंत्र कहला.. कहती हैं हम आज़ाद हैं.. हमें कुछ कहो मत आप... कि आपसब generation gap के शिकार हैं

तो कुछ यों रहा हमारी इस यात्रा का वृतांत्र...
अंत में दर्शन खुब खुब मधुर ढंग से हुए..
बस जय जय जगन्नाथ....

© दी कु पा