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नवरात्रि।
पापा कोई आया था। आप नहीं थे जब घर पर, जोजो ने अपने पापा से कहा। कौन आया था बेटा!.....पापा कोई बूढ़ी अम्मा थीं। कह रहीं थी ,बेर लाईं हूं, सूखे वाले। तुझे पसंद हैं ना। मैंने कहा, तुम्हें कैसे पता? वो मुस्कुराईं, और वोली ,ले अब, रख ले इन्हें। मैने कहा ,कितने के हैं अम्मा। तो वोलीं ऐसे ही,तेरे लिए ही लाई हूं। मुझे लगा, इतनी बूढ़ी अम्मा हैं, चलते भी ठीक से नहीं वन रहा। और बेर ,पता नहीं कहां से ,कैसे लायीं होंगी। मैं ऊपर गया और बीस रूपये लेकर आया। लो माँ, ये रख लो। मगर उसने पैसे लेने से मना कर दिया। तव तक दीदी भी आ गयी थी नीचे। दीदी को देख वह बोलीं, ओ बिटिया!......पानी पिला दे, बहुत जोर की प्यास लगी है। दीदी ने उसे पानी लाकर दिया, और चाय बनाकर भी दी। बड़ी खुश होकर चाय पी थी उसने। घर में और कोई नहीं है क्या? उसने पूछा। दिन में सच में कोई भी नहीं था। पर मुझे लगा ,कि पता नहीं कौन है यह,सब कुछ बताना ठीक ना होगा। तो मैने बात बनाते हुए कहा -मम्मी पास ही में गयीं हैं , अभी आती होंगी। और पापा भी बाजार से आ ही रहे होंगे। वह कुछ मुस्कुराई । पर पता नहीं क्यूं उससे कुछ भी डर सा नहीं लग रहा था मुझे ।मैने पूछा खाना खा लो अम्मा। उसने सिर हिलाकर मना कर दिया। मुझे लगा वृद्धावस्था है, कुछ खिला दूं इन्हें। आज नवरात्रि का पहला दिन भी था। मैं ऊपर किचिन में कुछ लाने के लिए आया, दीदी पहले ही ऊपर चली गयी थी। मैने कुछ फल, मावे की थोड़ी मिठाई एक प्लेट में ली, और नीचे वापिस आया। क्या देखता हूं कि वहां कोई नहीं है। ओह कहाँ गयीं अम्मा।इधर उधर देखा।मगर कोई भी नजर ‌ना आया। शायद चली गयी थीं वो, या अदृश्य हो गयीं थीं ,मुझे कुछ समझ ना आया। बाहर गेट पर भी देखा दूर तक कुछ ना दिखा। बस बेर का थैला रखा था। कभी सुना था कि माँ कभी बूढ़ी माँ के रूप में आती हैं। समझते देर ना लगी, लगा बूढ़ी माँ के रूप में देवी माँ ही आयीं थीं शायद। मन बहुत पछताने लगा। कि मैं उनका मान भी नहीं कर पाया। बस बहुत पछताया, पर अब कुछ नहीं हो सकता था। उनका आशीर्वाद समझकर बेर के थैले को चूमा, माथे से लगाया और रख लिया। जोजो की बात जैसे दिल‌में उतर गयी।और मन बहुत गहरे भावों से भर ‌गया।सच में उन बेरों में वो स्वाद था जो माँ के सच्चे प्यार में ही मिलता है । माँ का प्रसाद सभी ने कुछ दिन तक बड़े प्रेम से खाया। जोजो से सारा किस्सा सुनकर मुझे लगा कि जोजो को शायद माँ दर्शन दे गयीं थी। अब मेरी समझ में आ रहा था। कि बच्चों का भोला मन ही भगवान को पा सकता है। हमारी किस्मत में ये सब कहाँ। मन नहीं भूल पाता जोजो की वो सब बातें।
माँ मुझे भी दर्शन देना कभी, मन में ये प्रार्थना कर ,उस जगह मेरा शीष झुक गया ,जहां मां आयी थी, और मेरी आँखों से प्रेमाश्रु वह निकले।
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