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एक माचिस की डिबिया
माचिस की डिबिया ले लो,साहब १ रुपया की एक है ले लो ना।
बाज़ार में ऐसी आवाज गूंज रही थी उस दिन बहुत सर्दी थी ,एक छोटी सी बच्ची हाथ में एक थैला लिए माचिस बेच रही थी ,वो एक दम पतली सी थी ,एक गुथ कर के चोटी बनाई हुई थी , चहेरा एक दम पीला पड़ा हुआ था मानो कब से कुछ खाया ना हो ,एक फॉर्क पहनी हुई थी और एक पतली सी पैंट, पैरो मै हवाई चप्पल।
पूरे बाजार में घूम घूम कर माचिस बेच रही थी कोई ललकार मार देता तो कोई उस पर तरस खा कर माचिस खरीद लेता ।
धीरे- धीरे शाम होने लगी , अचानक बिजली कड़कने लगी , और वो बच्ची सहम गई फिर एक दम से बारिश होने लगी ।
वह बच्ची एक दुकान की आड़ में बैठ गई ताकि वो भीगे नहीं ,बारिश और तेज होने लगी ,सब अपने - अपने घर भाग गए सिर्फ वह बच्ची एक कोने में बैठी थी और बारिश ख़तम होने का इतज़ार कर रही थी ।
अब आधी रात हो गई लेकिन बारिश बंद नहीं हुई ,वह छोटी सी बच्ची थर - थर कांप रही थी फिर उसने एक माचिस की डिबिया निकली और एक - एक तिल्ली जलाने लगी ऐसे ही उसने सारी माचिस की तिल्ली जला दी ,हवाएं बहुत तेज थी कोई जलती तो कोई छट से भुज जाती , भूख भी लग रही थी लेकिन क्या करती इतनी सुम्साम रात में।
सुबह हुई सारे लोगो ने एक घेरा सा बनाया हुआ था और आपस में बाते कर रहे थे कुछ देख कर ।
वह लोग उस छोटी सी बच्ची के आस पास खड़े थे वह अपना थैला ओढ़े सिकुड़ कर बैठी हुई सी थी ।वह लोग बात कर रहे थे कि बच्ची कैसे मर गई ,क्या इसके मां बाप नहीं है किस की बच्ची है ,,और बहुत कुछ ।
#stopchildlabour#poverty
© nehachoudhary