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समय की मार- भाग दो
दोस्तों स्वागत है आप सभी का इस कहानी के दूसरे अध्याय में, पर आगे बढ़ने से पहले क्यों न पिछले भाग पर एक नज़र दौड़ाई जाए।
भाग एक में हमने देखा कि चंद्रभान जी और उनकी धर्मपत्नी सुशीला अपने बच्चों के साथ जीवन व्यापन कर रहे थे,इसी दौरान चंद्रभान जी की फैक्ट्री में आग लग जाती है जिसके चलते चंद्रभान जी को भारी नुक्सान झेलना पड़ता है। इस हादसे के तुरंत बाद चंद्रभान जी को दिल का दौरा पड़ता है और इलाज के बाद उन्हें घर लाया जाता है। अब चलते हैं आगे ---
तो डाक्टरों के सुझाव अनुसार सब कुछ सामान्य चल रहा था, चंद्रभान जी भी अब उस आपदा से उबरने का प्रयास कर ही रहे थे कि अचानक एक दिन उन्हें किसी का फोन आता है। जैसे ही चंद्रभान जी ने फ़ोन उठाया, उनके हाव भाव बदल गये और हाथ पांव फूलने लगे। ये देख कर उनकी पत्नी दौड़ती हुई आती है तो उन्हें पता चलता है कि उनके बेटे सुमित की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है, और काफ़ी चोटें आई है सुमित को। हड़बड़ी में दोनों, माता पिता ने घर को जैसे के तैसे छोड़ अस्पताल को दौड़ते हैं। यहां शिवानी, जो कि चंद्रभान जी की बेटी है, उन्हें भी इत्तिला की जाती है। जैसे ही सब अस्पताल पहुंचते हैं, उन्हें बताया जाता है कि सुमित को अस्पताल लाते समय ही मृत्यु हो चुकी है। इतना सुनते ही चंद्रभान जी को जैसे बहुत धक्का लगा और वे चक्कर खा कर ज़मीन पर धड़ाम से गिर पड़े, तो दूसरी तरफ सुशिला और शिवानी का भी रो रो कर हाल बुरा था। चंद्रभान जी की हालत गंभीर होने लगी तो उन्हें भी उसी अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। सुशीला और शिवानी के ऊपर मानो कोई गाज गिर गया हो। यहां बेटे की चिता की आग ठंडी नहीं हुई, वहां पिताजी भी चल बसे। दोनों औरतों का रो रो कर हाल बेहाल हुआ जा रहा था। आस पड़ोस के लोगों ने मिलकर चंद्रभान जी और सुमित का क्रियाकर्म करवाया, परिवार को सांत्वना देते हुए अपने अपने घर को रवाना हो गए।
परिवार के किसी भी सदस्य ने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा कि ऐसी विपदा उनका सुख चैन छीन, खुशियों के लिए उन्हें मोहताज कर देगी।
कुछ साल बीत गए। इस बीच शिवानी के लिए एक अच्छा रिश्ता आता है और जांच पड़ताल के बाद, विवाह संपन्न होता है।‌ शिवानी अब अपनी मां सुशीला के साथ अपने ससुराल में हंसी खुशी रहने लगी।
अपनी राय साझा करिए कहानी पढ़ने के उपरांत।
धन्यवाद, शुभ रात्रि मित्रों 🙏
© Aphrodite