उम्मीद
एक भिखारी था वैसे तो वह किसी से मांग कर नही खाता था परन्तु कुछ मजबूरियों की वजह से उसकी ऐसी हालत हुई थी पर एक घर के बाहर वह अक्सर जा कर बैठ जाता पता नही क्यों उसे उस घर से एक अपनापन महसूस होता था, वह उस घर के दरवाजे बैठ कर उस घर के मालिक को ढेरो दुआएं देता प्रेम जताता मानो उस घर से उसका कोई रिश्ता हो ,उस घर के बाहर बैठ कर वो अपने सारे तकलीफ भूल जाता था न जाने क्यों उसे ऐसा लगता था कि उस घर का मालिक बहुत अच्छा है वह उसकी उसकी परेशानी को समझेगा और वह भिखारी उस घर के दरवाजे दिन रात बैठ के कुछ मिलने की उम्मीद करता रहता,
शुरू के कुछ दिन तो उसे उस घर से कुछ रुखा सूखा खाना मिला पर धीरे धीरे ये सिलसिला भी बंद होने लगा ,और जैसे ही वो भिखारी उस घर के दरवाजे...
शुरू के कुछ दिन तो उसे उस घर से कुछ रुखा सूखा खाना मिला पर धीरे धीरे ये सिलसिला भी बंद होने लगा ,और जैसे ही वो भिखारी उस घर के दरवाजे...