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वह पागल लड़की
वक्त-वक्त की बात है। वक्त कभी किसी का इंतजार नहीं करता। लोग जाने कैसे-कैसे सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए कैसी-कैसी तरकीबें भिड़ाते रहते हैं, लेकिन होता क्या है? होता वहीं है, जो होना होता है। आज पूर्णिमा की रात है। वैसे तो हर महीने पूर्णिमा आती है, लेकिन आज से बारह साल पहले का वह पूर्णिमा का दिन मेरे लिए आज भी अविस्मरणीय है, जिस दिन मैंने उस पागल लड़की का साक्षात्कार किया था जो आज भी मेरे लिए एक अबूझ पहेली की तरह है।
लखनऊ विश्वविद्यालय में भाषा विज्ञान विभाग में शिक्षण कार्य करते हुए मुझे 8 वर्ष बीत चुके थे। रक्षाबंधन का दिन था। विभाग के सामने काफी देर तक टहलने के बाद उसने सकुचाते हुए विभाग के अंदर प्रवेश किया। पूछने पर पता चला कि वह अपनी बड़ी बहन श्वेता के बारे में पूछताछ करने आई है, जो भाषा विज्ञान विभाग में एम ए प्रथम वर्ष में एडमिशन लेना चाहती है । बड़ी बहन साथ में नहीं थी। पूछने पर उस लड़की ने अपना नाम दिव्या बताया। उसने हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में...