#टीचर : एक आयाम
#टीचर
आज टीईटी का परिणाम घोषित हुआ है, शैलेंद्र भी पास हुए है। घर में खुशी का माहौल है। वो क्या है, कि पांडेयपुर मोहल्ले में जनरल कास्ट का लडका एक ही बार में, वो भी बिना किसी घूंस के पास हुआ है...! कोई कम बात थोरे ना है जी! शैलेंद्र खुश है.. कि' अब वो अपने तरीके से बच्चों को इतिहास की सैर करवाएंगा। '
इसी उम्मीद और बुलंद हौसले के साथ उसने शिक्षक के पद पर कार्यभार संभाला। पहले दिन जैसे ही उसने स्कूल में प्रवेश किया, कि रोंगटे खड़े हो गये.. समूचा अस्तित्व गद्- गद् हो उठा.! जीवनभर के ख्वाब आज साकार हो रहे थे। भगवान का लाख - लाख शुकरिया अदा करते हुए उसका गला रूंध - सा गया और भावविभोर होकर आंखें भी नम हो आयी।
जीवन का नया अध्याय बडे धूमधाम से प्रारंभ किया। हेडमास्टर ने सबसे पहले स्कूल के नियम समजाये और तुरंत बच्चों का हाजरी पत्रक थमा दिया । बाद में कुछ बातें - रहस्य समजा दिये। पहले दिन इतिहास को बहुत ही रोचक बनाकर, जान छिड़ककर पढाया ... बच्चे खुश होगये। दिन पर दिन बितते गये।
आखिर एक दिन उसको प्रिन्सिपल ने ओफिस में बुलाया, जहाँ पर ट्रस्टी भी मौजूद थे। इधर- उधर की बातों के बाद प्रिन्सीपल ने संस्थान के खर्च रख-रखाव और डॉनेशन के बारे में चर्चा की। और शैलेन्द्र को भी अंशतः दान के रूप में २५, ००, ००० की सखावत देने की बात कही।
यह सूनते ही शैलेन्द्र के होश उड़ गये जैसे - तैसे करके खूद को सँभाला । स्वयं को कुछ चुभोया कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं है। हां'.. ना.. के अंत में थोडे कम ही सही.. पैसे देने की संमति देकर.. थोडे तनख्वाह से काटने की बात कहकर - घर लौटा। बड़ा ही मायूस और उदास देखकर मां पापा के पुछने पर उनको बात कही तो.. पुरा परिवार भी बड़ा ही निराश हो गया। खुशी हवा बन गई। चिंता शायद चिता बनकर उसके शरीर में घर कर गयी।
अब वह पढ़ाई करवाता लेकिन उत्साह नहीं था.. बच्चों को डांट देता । बस ! उखडे-उखडे से मन से नौकरी ही करने लगा।
उसके स्वप्नों की बालमृत्यु हो गयी। १५...२० साल तक पढ़ाई.. फिर लंबा चौड़ा खर्च, परीक्षा की टेन्शन, स्वप्ने , जिम्मेदारियाँ... सब कुछ बेकार सा लग रहा था।
इधर नहीं, तो उधर घूस देना पडी... चाहे उसे घूस लेने का मौका मिले ना मिले। हर कचहरी में सब कुछ 'सेट' होता है सबका 'निश्चित रेट' होता है। लेकिन अफसोस, कि शिक्षकों को ऐसा मौका नहीं पडता बल्कि मौका मिलने पर भी वे इस झमेले नहीं पडते। क्योंकि उनको देश का भविष्य निर्माण करना है।
एक तो फिक्स तनख्वाह से नौकरी और उपर से पेन्शन का टेन्शन। जवानी फिक्स तनख्वाह के अभावभरे माहौल में और बूढापा पैन्शन के अभाव परोपजिवी बनकर गुजारना !! उपरसे नौकरि मतलब चौबीसों घण्टे की जिम्मेदारी !! बेचारा शैलेन्द्र सोच में पड गया। कई साल तक पागल की तरह मेहनत करके अच्छी नौकरी पाने की और परिवार को खूशहाल में रखने के जो स्वप्न संजोए थे वह उसे आज पागलपन ही लग रहा था।
आज आंदोलन में वह खडा जरूर है पर अपनी जिम्मेदारी उसे क्लास में बुला रही है । 🙏
© All Rights Reserved
आज टीईटी का परिणाम घोषित हुआ है, शैलेंद्र भी पास हुए है। घर में खुशी का माहौल है। वो क्या है, कि पांडेयपुर मोहल्ले में जनरल कास्ट का लडका एक ही बार में, वो भी बिना किसी घूंस के पास हुआ है...! कोई कम बात थोरे ना है जी! शैलेंद्र खुश है.. कि' अब वो अपने तरीके से बच्चों को इतिहास की सैर करवाएंगा। '
इसी उम्मीद और बुलंद हौसले के साथ उसने शिक्षक के पद पर कार्यभार संभाला। पहले दिन जैसे ही उसने स्कूल में प्रवेश किया, कि रोंगटे खड़े हो गये.. समूचा अस्तित्व गद्- गद् हो उठा.! जीवनभर के ख्वाब आज साकार हो रहे थे। भगवान का लाख - लाख शुकरिया अदा करते हुए उसका गला रूंध - सा गया और भावविभोर होकर आंखें भी नम हो आयी।
जीवन का नया अध्याय बडे धूमधाम से प्रारंभ किया। हेडमास्टर ने सबसे पहले स्कूल के नियम समजाये और तुरंत बच्चों का हाजरी पत्रक थमा दिया । बाद में कुछ बातें - रहस्य समजा दिये। पहले दिन इतिहास को बहुत ही रोचक बनाकर, जान छिड़ककर पढाया ... बच्चे खुश होगये। दिन पर दिन बितते गये।
आखिर एक दिन उसको प्रिन्सिपल ने ओफिस में बुलाया, जहाँ पर ट्रस्टी भी मौजूद थे। इधर- उधर की बातों के बाद प्रिन्सीपल ने संस्थान के खर्च रख-रखाव और डॉनेशन के बारे में चर्चा की। और शैलेन्द्र को भी अंशतः दान के रूप में २५, ००, ००० की सखावत देने की बात कही।
यह सूनते ही शैलेन्द्र के होश उड़ गये जैसे - तैसे करके खूद को सँभाला । स्वयं को कुछ चुभोया कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं है। हां'.. ना.. के अंत में थोडे कम ही सही.. पैसे देने की संमति देकर.. थोडे तनख्वाह से काटने की बात कहकर - घर लौटा। बड़ा ही मायूस और उदास देखकर मां पापा के पुछने पर उनको बात कही तो.. पुरा परिवार भी बड़ा ही निराश हो गया। खुशी हवा बन गई। चिंता शायद चिता बनकर उसके शरीर में घर कर गयी।
अब वह पढ़ाई करवाता लेकिन उत्साह नहीं था.. बच्चों को डांट देता । बस ! उखडे-उखडे से मन से नौकरी ही करने लगा।
उसके स्वप्नों की बालमृत्यु हो गयी। १५...२० साल तक पढ़ाई.. फिर लंबा चौड़ा खर्च, परीक्षा की टेन्शन, स्वप्ने , जिम्मेदारियाँ... सब कुछ बेकार सा लग रहा था।
इधर नहीं, तो उधर घूस देना पडी... चाहे उसे घूस लेने का मौका मिले ना मिले। हर कचहरी में सब कुछ 'सेट' होता है सबका 'निश्चित रेट' होता है। लेकिन अफसोस, कि शिक्षकों को ऐसा मौका नहीं पडता बल्कि मौका मिलने पर भी वे इस झमेले नहीं पडते। क्योंकि उनको देश का भविष्य निर्माण करना है।
एक तो फिक्स तनख्वाह से नौकरी और उपर से पेन्शन का टेन्शन। जवानी फिक्स तनख्वाह के अभावभरे माहौल में और बूढापा पैन्शन के अभाव परोपजिवी बनकर गुजारना !! उपरसे नौकरि मतलब चौबीसों घण्टे की जिम्मेदारी !! बेचारा शैलेन्द्र सोच में पड गया। कई साल तक पागल की तरह मेहनत करके अच्छी नौकरी पाने की और परिवार को खूशहाल में रखने के जो स्वप्न संजोए थे वह उसे आज पागलपन ही लग रहा था।
आज आंदोलन में वह खडा जरूर है पर अपनी जिम्मेदारी उसे क्लास में बुला रही है । 🙏
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