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तक़दीर मोहताज़ तदवीर की
आज मंदिर के सामने से गुज़रते हुए जैसे ही राजू की नज़र मंदिर के अंदर गई उसे उसका पुराना पड़ोसी और दोस्त कमल मंदिर में भिक्षा देते हुए दिखाई दिया। कहने को तो कमल और उसका परिवार पुश्तों से राजू के घर नौकरी करता आ रहा था पर आज कमल को देख कर कोई ये नहीं बोल सकता कि आज गाँव का सबसे अमीर इंसान कल तक खुद किसी और के घर नौकरी करता फिरता था। कमल को इस तरह देख कर राजू नज़र बचाते हुए आगे बढ़ गया और रास्ते में चलते चलते अपने कर्मों को याद करने लगा।

पुरखों का नाम शान शोहरत इज़्जत ऐसा कुछ नहीं था जो राजू को विरासत में नहीं मिला हो। यूँ तो राजू के पुरख़े ही पीढ़ियों से मधुवन गाँव में ज़मीदारी करते आए थे पर उनके ठाठ बाट भी किसी रियासत के राजा से कम न थे। ठाठ बाट होते भी क्यों न उनके अच्छे आचरण के चर्चें आस पास के सभी गाँव में हुआ करते थे। बोलने का सलीका तो ऐसा था कि दुश्मन को भी दोस्त बना लेते थे। हमेशा ही दूसरों की मदद को तैयार रहते थे चाहे दोस्त हो या रिश्तेदार या खेतों पर काम करने वालें मज़दूर। कभी किसी को मदद करने में पीछे नहीं रहते थे। उनके इस व्यवहार से गाँव का हर व्यक्ति उनका मान सम्मान करता और लगन से अपना काम किया करता था। देने वाला जब देता है तो छपर फाड़ कर देता है ये बात राजू के पुरखों पर सटीक बैठती थी। एक तरफ अपने व्यवहार से जहाँ उन्हों लोगों के दिलों में घर कर लिया था वहीं दूसरी तरफ हर साल पानी भी ऐसा बरसता था कि जैसे पूरे क्षेत्र में बस उनके की खेत हो जिससे खेती साल दर साल अच्छी होती थी। ऊपर से जब से नहरें बनने का काम शुरू हुआ तो नहर निकली भी तो उनके खेतों के बिल्कुल बीच से जैसे अब तो उनकी पाँचों उँगली घी में और सिर कड़ाई में हो। यह सब अब राजू के पुरखों को किसी ख़्वाब से कम नहीं लगता था और उनके दिल में सदा आता की यह दौर यहीं रुक जाए पर वक़्त आज तक कहाँ किसी का सगा हुआ है। वक़्त तो अपनी मदमस्त चाल से चलता रहता है। बचपन से ही उसे बाप दादाओं की कमाई हुई दौलत और शानओं शौहरत का बहुत घमंड हो चला था। बचपन में उसकी जिन गलत आदतों को घरवालें बचपना समझ कर टाल दिया करते थे आज वहीं आदतें उसका चरित्र बन गई थी। विरासत में उसे अपने पुरखों से पैसा तो मिला पर उनकी अच्छी आदतें उसमें रती भर भी न थी। बड़े छोटे का मान सम्मान, किसी की मदद करना, अपने शब्दों पर लगाम लगाना ये सब काम तो जैसे उसने कभी कक्षा में भी नहीं सीखें थे। अपनी इस घमंड भरी आदतों के कारण वह छोटी उम्र में ही गलत संगत में भी पड़ गया था। कभी कभी तो वह गुस्से में अपने घरवालों से ही लड़ने लगता था। वो तो उस वक़्त उसके मुंसी का लड़का कमल उसे घर से दूर ले जाकर समझाता था तब कहीं उसका गुस्सा शांत होता था। विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद कमल आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला गया लेकिन राजू अपनी आदतों और पढ़ाई से जी चुराने के कारण विद्यालय की पढ़ाई कभी पूरी नहीं कर पाया। जब तक कमल उसके पास था उसे किसी तरह समझा कर सही राह पर ले आता था लेकिन उसके जाने के बाद तो उससे बोलना भी कोई पसंद नही करता था क्योंकि सबको उसकी आदतों का पता था कि उसे कुछ समझना जैसे भैंस के आगे बीन बजाना। वक़्त बढ़ता गया और कमल भी अपनी पढ़ाई पूरी करके वापिस गाँव आ गया था। अब उसे कुछ भी पहले जैसे न दिखा था न राजू के पुरखों का वो नाम बचा था न ही वो शानओं शौहरत। कल तक जो राजू पूरे गाँव पर अपना हुकुम चलाता था जिसके खेतों पर सैकड़ो मज़दूर काम किया करते थे आज वो खुद दो वक़्त की रोटी के लिये दूसरों के खेतों पर काम करता फिरता। अपने कर्मों को याद करते करते कब वह अपनी झोपड़ी के पास पहुँच गया उसे पता ही नहीं चला।


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