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!! जीभ का रस !!


!! जीभ का रस !!
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एक बूढ़ा राहगीर थक कर कहीं टिकने का स्थान खोजने लगा. एक महिला ने उसे अपने बाड़े में ठहरने का स्थान बता दिया. बूढ़ा वहीं चैन से सो गया. सुबह उठने पर उसने आगे चलने से पूर्व सोचा कि यह अच्छी जगह है, यहीं पर खिचड़ी पका ली जाए और फिर उसे खाकर आगे का सफर किया जाए. बूढ़े ने वहीं पड़ी सूखी लकड़ियां इकठ्ठा कीं और ईंटों का चूल्हा बनाकर खिचड़ी पकाने लगा. बटलोई उसने उसी महिला से मांग ली.

बूढ़े राहगीर ने महिला का ध्यान बंटाते हुए कहा, 'एक बात कहूं.? बाड़े का दरवाजा कम चौड़ा है, अगर सामने वाली मोटी भैंस मर जाए तो फिर उसे उठाकर बाहर कैसे ले जाया जाएगा.?' महिला को इस व्यर्थ की कड़वी बात का बुरा तो लगा, पर वह यह सोचकर चुप रह गई कि बुजुर्ग है और फिर कुछ देर बाद जाने ही वाला है, इसके मुंह क्यों लगा जाए.

उधर चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी आधी ही पक पाई थी कि वह महिला किसी काम से बाड़े से होकर गुजरी. इस बार बूढ़ा फिर उससे बोला, 'तुम्हारे हाथों का चूड़ा बहुत कीमती लगता है यदि तुम विधवा हो गईं तो इसे तोड़ना पड़ेगा ऐसे तो बहुत नुकसान हो जाएगा.?'

इस बार महिला से सहा न गया. वह भागती हुई आई और उसने बुड्ढे के गमछे में अधपकी खिचड़ी उलट दी. चूल्हे की आग पर पानी डाल दिया. अपनी बटलोई छीन ली और बुड्ढे को धक्के देकर निकाल दिया.

तब बुड्ढे को अपनी भूल का एहसास हुआ. उसने माफी मांगी और आगे बढ़ गया. उसके गमछे से अधपकी खिचड़ी का पानी टपकता रहा और सारे कपड़े उससे खराब होते रहे. रास्ते में लोगों ने पूछा, 'यह सब क्या है.?' बूढ़े ने कहा, 'यह मेरी जीभ का रस टपका है, जिसने पहले तिरस्कार कराया और अब हंसी उड़वा रहा है।'

शिक्षा:-
तात्पर्य यह है कि पहले तोलें फिर बोलें। चाहे कम बोलें मगर जितना भी बोलें, मधुर बोलें और सोच समझ कर बोलें.