सेकंडों में जीवन मुक्ति :-
सेकंड में 'जीवनमुक्ति' कैसे मिल जाती है इसके लिए राजा जनक का मिसाल दिया जाता है। इतिहास साक्षी है कि इसके अलावा भी बहुत सारी मिसालें ऐसी मिलती हैं, जहां कोई एक बात दिल को तीर की तरह लगी और कठोर ह्रदय परिवर्तन हो गया। ज्ञान की किसी पॉइंट ने ऐसा टच किया जो बड़े से बड़ा विकारी भी सुसंस्कारी बन गया और उसने इतिहास रच डाला। संत तुलसीदास का ही मिसाल ले लेते हैं। उनके जीवन की उस एक घटना का यहां संक्षेप में उल्लेख करते हैं जिसने उन्हें पूरी तरह से सांसारिकता से अध्यात्मिकता की ओर मोड़ दिया।
संत तुलसीदास जी का अपनी पत्नी में बहुत अनुराग था। एक बार जब वह अपने पिता के घर गई तो वे पत्नी के बिना रह ना सके और आधी रात को उसके मायके की ओर चल दिए। रास्ते में एक नदी पड़ती थी जिसमें वर्षा के कारण बाढ़ सा उफान था। पत्नी से मिलने की ऐसी धुन उन्हें लगी थी जो वह नदी में बहते हुए एक मुर्दे को लकड़ी का लट्ठा समझकर उस पर बैठ पार पहुंच गए। ससुराल पहुंचने पर उन्होंने देखा पत्नी की कोठरी से एक सांप लटक रहा था जिसे रस्सी के भ्रम में उन्होंने पकड़ा और उसके सहारे ऊपर चढ़ गए। स्त्री अचानक उन्हें आया देख आश्चर्यचकित रह गई, तब उन्होंने सारा वृत्तांत पत्नी को कह सुनाया। *पत्नी ने उन्हें फटकार लगाई, 'अरे! हाड़, मांस, रक्त और कफ से परिपूर्ण मेरे शरीर में तुम्हारी जो प्रीत है, ऐसी प्रीत यदि श्रीराम से होती तो आप इस असार संसार से तर जाते।
तुलसीदास जी को पत्नी की बात लग गई और सेकंड में उनके जीवन को विकारों से मुक्ति मिल गई। उसी समय उन्होंने अपनी पत्नी को धर्म-माता के रूप में माना और वापस चले गए। फिर देखिए राम के प्रति उनकी भक्ति वा प्रीत, जो उन्होंने महाग्रंथ 'रामचरितमानस' की रचना कर डाली। उनकी जीवन गाथा पुकार पुकार कर कहती है कि विकारों को छोड़े बिना मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर ही नहीं सकता। कब कौन सी ज्ञान की पॉइंट किसी के हृदय को पूर्णरूपेण परिवर्तित कर दें, उसके जीवन को विकारों से मुक्ति प्रदान कर दे कह नहीं सकते।(डॉ. श्वेता सिंह)
© Dr.Shweta Singh
संत तुलसीदास जी का अपनी पत्नी में बहुत अनुराग था। एक बार जब वह अपने पिता के घर गई तो वे पत्नी के बिना रह ना सके और आधी रात को उसके मायके की ओर चल दिए। रास्ते में एक नदी पड़ती थी जिसमें वर्षा के कारण बाढ़ सा उफान था। पत्नी से मिलने की ऐसी धुन उन्हें लगी थी जो वह नदी में बहते हुए एक मुर्दे को लकड़ी का लट्ठा समझकर उस पर बैठ पार पहुंच गए। ससुराल पहुंचने पर उन्होंने देखा पत्नी की कोठरी से एक सांप लटक रहा था जिसे रस्सी के भ्रम में उन्होंने पकड़ा और उसके सहारे ऊपर चढ़ गए। स्त्री अचानक उन्हें आया देख आश्चर्यचकित रह गई, तब उन्होंने सारा वृत्तांत पत्नी को कह सुनाया। *पत्नी ने उन्हें फटकार लगाई, 'अरे! हाड़, मांस, रक्त और कफ से परिपूर्ण मेरे शरीर में तुम्हारी जो प्रीत है, ऐसी प्रीत यदि श्रीराम से होती तो आप इस असार संसार से तर जाते।
तुलसीदास जी को पत्नी की बात लग गई और सेकंड में उनके जीवन को विकारों से मुक्ति मिल गई। उसी समय उन्होंने अपनी पत्नी को धर्म-माता के रूप में माना और वापस चले गए। फिर देखिए राम के प्रति उनकी भक्ति वा प्रीत, जो उन्होंने महाग्रंथ 'रामचरितमानस' की रचना कर डाली। उनकी जीवन गाथा पुकार पुकार कर कहती है कि विकारों को छोड़े बिना मनुष्य आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर ही नहीं सकता। कब कौन सी ज्ञान की पॉइंट किसी के हृदय को पूर्णरूपेण परिवर्तित कर दें, उसके जीवन को विकारों से मुक्ति प्रदान कर दे कह नहीं सकते।(डॉ. श्वेता सिंह)
© Dr.Shweta Singh