" नासमझ "
" नासमझ "
यह कहानी एक ऐसे परिवार की है, जो नासमझ, रूढ़िवादी के बंधनों में क़ैद हैं । यह वह धर्म की स्थापना है जहाँ पर्दे के बिना एक नन्ही सी जान जो अभी-अभी इस संसार में कदम रखा है, जिसे दुनियाँ की समझ ही नहीं। वह यह भी नहीं जानती कि वह कौन है?
उसके इर्द-गिर्द चहलकदमी करने वाले कौन हैं?
उस मासूम को भी सर खुला रखने की गुंजाइश नहीं है। पैदा हुए नन्ही सी जान के सिर में अभी पूरी तरह बाल भी नहीं उगे हैं।
उसके सिर पर पर्दा का बोझ रख दिया जाता है, जिसे देखकर दूर से ही क़ौम ज़ाहिर हो जाता है।
एक ऐसे परिवार में जन्मी लड़कियों का जीवन इतना भी आसान नहीं होता है।
वैसे देखा जाए तो लड़कियाँ जिस भी समाज की हों उन पर बंदिशें...
यह कहानी एक ऐसे परिवार की है, जो नासमझ, रूढ़िवादी के बंधनों में क़ैद हैं । यह वह धर्म की स्थापना है जहाँ पर्दे के बिना एक नन्ही सी जान जो अभी-अभी इस संसार में कदम रखा है, जिसे दुनियाँ की समझ ही नहीं। वह यह भी नहीं जानती कि वह कौन है?
उसके इर्द-गिर्द चहलकदमी करने वाले कौन हैं?
उस मासूम को भी सर खुला रखने की गुंजाइश नहीं है। पैदा हुए नन्ही सी जान के सिर में अभी पूरी तरह बाल भी नहीं उगे हैं।
उसके सिर पर पर्दा का बोझ रख दिया जाता है, जिसे देखकर दूर से ही क़ौम ज़ाहिर हो जाता है।
एक ऐसे परिवार में जन्मी लड़कियों का जीवन इतना भी आसान नहीं होता है।
वैसे देखा जाए तो लड़कियाँ जिस भी समाज की हों उन पर बंदिशें...