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ना भुलने वाला ट्रेन सफर🕉️
#LastTrain
ट्रेन काफी लेट हो चुकी थी। रात होने लगी थी। लेकिन जाना जरूरी था क्योंकि मां के कई बार फोन आ चुके थे कि आजा मिल जा अब तो तीन दिन की सरकारी छुट्टियां आ रही है। इसलिए ओफिस के बाद शाम की ट्रेन बुक करवाईं थी। ट्रेन दो घंटे लेट आई। मैं जल्दी से ट्रेन में चढ़ गई ताकि सीट मिल सके। जैसे ही मैंने नज़र दौड़ाई मैंने देखा कि ट्रेन में किसी दूसरे ही ज़माने के लोग बैठे हुए हैं।यह नजारा देख कर मैं हैरान रह गई। मैंने देखा कि ट्रेन में अलग-अलग काल के यात्री बैठे हुए हैं और अपने-अपने काल की बातें कर रहे हैं।
जब मैं आगे बढ़ी तो मैंने देखा कि यात्री सत्ययुग की बातें कर रहे हैं कि कैसे सतयुग में राजा हरिश्चन्द्र जी को अपने राज्य का त्याग करना पड़ा और उनकी रानी और बेटे को भी दूसरों के घर नौकरी करनी पड़ी।
मैं और आगे बढ़ी सीट लेने के लिए तो मुझे त्रेतायुग के यात्री बैठे मिले जों उस समय की बातें कर रहे थे।
मैंने उनकी बातें बहुत ही ध्यान से सुनीं बहुत ही अच्छा लग रहा था। मानों सारी रामायण सामने देख रहीं हूं।
फिर और आगे बढ़ी तो द्वापरयुग के यात्री मिले इनसे तो मैंने भी बहुत सारी बातें की कान्हा के युग के जों थे। उन्होंने अपने युग के बारे में सब बताया कि कैसे कृष्ण भगवान ने अवतार लिया और दुष्टों का संहार किया। मैं मन ही मन बहुत खुश हों रहीं थी कि अचानक मोबाइल की घंटी बजी। मैं अचानक जैसे गहरी नींद से उठीं। मैंने फोन उठाया फोन पर मेरा भाई बोल रहा था कि घबराना मत मैं स्टेशन पहुंच चुका हूं सामान मैं खुद उतार दूंगा। मैंने कहा ठीक हैं भाई।
मैंने ट्रेन में जो समय बिताया मेरे लिए रोमांच से भरा हुआ था। जों किस्से कहानियां हर युग की हम सुनते आए हैं वो सारी जैसे मेरे आगे घटित हुई है। कई बार मेरे मन में सवाल उठता है कि कैसे होंगे उन युगों के लोग शायद इसीलिए हीं मैं इस ट्रेन में थीं। मैंने सब कुछ देख कर पाया कि संघर्ष हीं मनुष्य की कहानी है।
ट्रेन रुक चुकी थी मेरा भाई सामने खड़ा था भाई को सामने देखकर मैं मुस्कराई और मन ही मन कहा कि मैं अपने युग में लौट आई हूं।🤗
मन की आवाज ॐ
एस के हरियाणा ✨
24/6/24
#writcostory


© Sudesh Chauhan (SK)