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एक पागल लडकी
उसका खूबसूरत सा चेहरा उजड़ा हुआ था
ये उसके चाहत की हद थी
जो उसे अक्सर रोने पर मजबूर कर देती थी
जब से वो गया था
वो चुपचाप सी, सहमी-सहमी सी
दिखाई देती थी

वो सिर्फ अपनी परछाई में
कैद हो कर रह गयी थी
समय गुजरता जा रहा था
और वो धीरे धीरे पागल हो रही थी
और एक दिन आया जब
"चाहत पागलपन की हद से गुजर गई"
ऐसा पागलपन जो
आत्मा से भी आत्मा निकाल दे
ऐसे में जन्म लेती है एक किवदंती
जो आगे चल कर कहानी बन जाती है

कहानी, "एक पागल लड़की की",
जो किसी के इश्क में इतनी पागल हो गयी
जिसे पूरी दुनिया पागल नजर आने लगी
वो दुनिया को पागल लगती थी
और पूरी दुनिया उसको
जहां, वो रहा करती थी
उस इलाके में कई दंत कहानियां मशहूर थी
उसके संबंध में,
जो आगे चल कर सच मान ली गयी
कोई, बताता था वो बदचलन थी
कोई उसे राजकुमारी बताताथा
कोई उसे कुछ भी बताता था
मगर कोई ये नही बताता था
कि उसने मोहब्बत भी की थी

हजारों कहानियां प्रचलित होकर भी
उससे संबंधित न थी
काश! कोई उसके मोहब्बत की
कहानी भी गढ़ देता
मगर ऐसा नही हुआ था

एक दौर था जब इश्क
पागलपन की हद तक था उसको
अब इश्क जा चुका था
और एक पागल ही बचा है उसके अंदर
पागल, जो शांत रहता था
छेड़ता नही था किसी को
शोर नही मचाता था
उलझन में रहता था हमेशा
बात नही करता था किसी से
थोड़ा बहुत मुस्कुराता था
और फिर अपनी ही इर्द-गिर्द की
चीजों को देखकर मायूस हो जाता था

एक दिन बाजार में
एक औरत मर गयी थी
मक्खियां मंडरा रही थी उस पर
बाल उलझे से,बिखरे हुए,
आंखों खुली हुई, दर्द से भरी हुई
हाथ में एक रोटी का टुकड़ा
और पत्थर की कुछ गिट्टियां थी
तभी एक बूढ़ा आदमी आता है
उसे उठता है उसका दाह संस्कार कर देता है
कौन था, क्यों किया, ये नही पता,
बस उसने कर दिया दाह संस्कार

मुझे याद है कोई कह रहा था भीड़ में
कि राजकुमारी को मुक्ति मिल गयी
और कोई ये कह रहा था कि
अच्छा हुआ ये पागल मर गयी
मगर सच तो ये था कि
"कुछ लोग इतने स्वाभिमानी होते हैं
कि उम्मीद में ही अपने प्राण त्याग देते हैं"

"उसे मुक्ति तो मिल गयी थी मगर उसके दर्द से।"

© शिवप्रसाद