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जाको राखे साइयां मार सके ना कोई
#WritcoStoryPrompt16
स्नेहा जो एक होनहार और समझदार लड़की थी।अपनी ज़िंदगी में उसने कभी भी किसी भी हालातों में हार नहीं मानी हर हालातों का उसने बहुत ही
होशियारी और समझदारी से डटकर सामना किया। पर स्नेहा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था।जिसके कारण ना तो कभी भी उसको पढ़ने का मौका मिला और ना ही कभी नौकरी करने की कोई अनुमति मिली। स्नेहा के साथ-साथ उसके दो बहन भाई और भी थे। जिसके कारण उसके पिता को उनकी चिंता होती रहती थी।स्नेहा घर में सबसे बड़ी बेटी थी।स्नेहा के पिता ने स्नेहा की शादी करने की सोची।
जिस गांव में स्नेहा का परिवार रहता था।उस गांव का जिंमीदार बहुत ही निर्दयी था। एक दिन जिंमीदार की नजर स्नेहा पर पड़ती है और वह स्नेहा को देखकर उसका दीवाना हो जाता है वह उसे किसी भी हालत में पाना चाहता था। इसलिए जिम्मेदार ने स्नेहा के घर में स्नेहा के लिए अपने शादी का प्रस्ताव भेजा। पर स्नेहा और स्नेहा के पिता ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। क्योंकि जमींदार पहले से ही शादीशुदा था और स्नेहा से उमर में बहुत ज्यादा था। जिम्मेदार स्नेहा को अपना बनाना चाहता था।पर जिंमीदार स्नेहा को कभी भी पा ना सका। जिस कारण जिम्मेदार को बहुत गुस्सा आया। जिंमीदार ने सोचा जब वह मेरी नहीं हो सकती तो वह किसी की भी नहीं हो सकती तो उसने स्नेहा को खत्म कर देने की योजना बनाई।
एक दिन जब स्नेहा नदी में पानी भरने के लिए जाती है।तो जिंमीदार अपने कुछ आदमियों को भेजकर नेहा को नदी में मार देने का प्लान बनाता है।जब स्नेहा नदी में पानी भर रही होती है।तो कुछ व्यक्ति पीछे से आकर उसे धक्का दे देते हैं।स्नेहा का पांव लड़खड़ाता है और वह नदी में डूबने लगती है। वह जो़र-जो़र से चिल्लाती है कि बचाओ बचाओ पर वहां कोई भी ऐसा नही होता जो उसे बचा सके नदी की लहरें उसे अपनी तरफ खींचने लगती है।
वह मौत की चपेट में नाजुक शाखा को पकड़े हुए थी क्योंकि पानी की गर्जना उसे खींच कर ले जाने की धमकी दे रही थी।
वह हांफने लगी, बुदबुदाती भंवर उसके मुॅंह में घुस गई। कोई उम्मीद नहीं बची थी उसके अब बचने की। पानी की लहरें उसे अपनी तरफ खींची ही जा रही थी। स्नेहा अपने आप को बचाने का पूरा पर्यत्न कर रही थी। जब तक हो सका स्नेहा ने अपने आपको बचाने के लिए पूरा यतन किया।पर स्नेहा अपने हिम्मत हार चुकी थी। नदी का बहाव उसे बहा बहुत दूर ले गया। स्नेहा की किस्मत अच्छी थी कि स्नेहा बच गई।
नदी का बहाव उसे बहा कर बहुत दूर तक ले गया था। जब कुछ लोगों ने नदी के किनारे में स्नेहा को देखा तो मैं उसे उठाकर अपनी बस्ती में ले गए और उसका इलाज करा कर उसे सही स्वस्थ कर दिया। स्वस्थ होते ही स्नेहा अपने गांव को लौट गई और अपने माता-पिता से जाकर मिली। तब स्नेहा ने अपने पिता से उसके साथ बीती सारी कहानी सुनाई। तब स्नेहा के पिता ने यही कहा जाको राखे साइयां मार सके न कोई।