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शून्य की परछाई
बनारस की संकरी गलियों में हल्की बारिश हो रही थी। पुरानी हवाओं में एक घना सन्नाटा फैला हुआ था। घाट की सीढ़ियों पर किसी अजनबी ने अचानक एक खौफनाक चीख सुनी। लोग दौड़े, और वहां एक लाश पड़ी मिली—खून से लथपथ, गर्दन पर गहरे घाव के साथ। लेकिन सबसे चौंकाने वाली चीज़ थी उसके हाथ में पकड़ी हुई एक किताब का पन्ना, जिस पर केवल एक शब्द लिखा था: "शून्य।"

इंस्पेक्टर अमन, जो बनारस के सबसे होशियार और निडर अफसरों में से एक थे, को तुरंत बुलाया गया। जैसे ही अमन उस भयानक दृश्य पर पहुंचे, उन्होंने लाश की जाँच की। लाश का नाम था विनय शर्मा, एक अनजान लेखक, जिसकी कोई खास पहचान नहीं थी। लेकिन उस पन्ने ने अमन का ध्यान खींचा। यह पन्ना किसी अनछुई किताब का हिस्सा लगता था।

अमन ने जांच शुरू की और विनय के घर से एक पुरानी डायरी बरामद की। उसमें कई अधूरी कहानियाँ थीं, लेकिन एक कहानी बार-बार ध्यान खींच रही थी—"शून्य की परछाई"। इस कहानी का मुख्य किरदार एक सीरियल किलर था, जो अपने शिकारों की मौत से...