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..........उज्वला...........
आज एक बार फिर से बूढ़ी अम्मा के घर से धुआं उठ रहा था | मई का महीना अपने उपस्थित होने का एहसास करा रहा था | अंदर जाकर देखा तो बूढ़ी अम्मा एक हाथ से आंखों को मलती तो,दूसरे हाथ से फुकनी से फुकर कर चूल्हा जलाने का प्रयास कर रही थी | अम्मा कैसी हो?क्या कर रही हो मैंने पास आकर पूछा | पर अम्मा ने कोई जवाब ना दिया, तभी मेरी नजर पास में ही रखे गैस सिलेंडर पर गई| मेरे से रहा न गया मैंने एक बार फिर से अम्मा से कहा अम्मा जब गैस सिलेंडर है तू चूल्हा क्यो??
अम्मा की चुपी मेरे मन को और अशांत कर रही थी अम्मा उठी और पास रखे सिलेंडर को एक हाथ से उठा वापस रख दिया शायद अम्मा ने मेरे प्रश्नों का जवाब तो दे दिया था,पर जवाब अभी भी अपने साथ कई प्रश्न को समेटे हुए थे,|बेटा ₹500 पाती हन विधवा पेंशन मा महीना भर का राशन लवान की ₹816 का सिलिंडर भरावन |जब नवा नवा मिला रहे बस तभी भरा था अब तो फिर से चुल्हा ही सहारा है| अम्मा ने चुप्पी तोड़ मन की बात आखिरकार कह ही डाली थी | तभी मेरा मन भाषण कि वह बड़ी-बड़ी लाइनें याद कर रहा था |जो ना जाने कितनी बार तालियों की साक्षी बन चुकी थी| हमारी माताएं बहने गांव में चूल्हे में खाना पकाती हैं धुएँ से उनकी आंखों और सेहत को नुकसान पहुंचता है| उज्जवला योजना ने हर एक गांव की हर एक महिला को चूल्हे के धुए से आजादी दिला दी है शायद आपने भी ये लाइने जरूर सुनी होंगी |
सरकार की उपलब्धियों के चिठो में भले ही ये योजना आज अपना वर्चस्व रखती हो पर जमीनी स्तर पर आज भी आपको ना जाने ऐसी कितनी बूढ़ी अम्मा आस पास मिल जाएंगी |जो आज भी धुएँ के साथ जीवन जीने के लिए विवश हैं.................../////////

Written by• ADARSH...
© Adarsh