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समय नहीं, मनुष्य है बदला|
मैंने कई बार लोंगों के वृतात्न द्वारा सुना है-"अब वो समय नहीं रहा |अब वो दिन गए जब हम फला-फला चीज़े करते थे|आज का काल बड़ा दुखदायी हो गया है |अब ये भी दिन देखने पड़ रहे हैं |सचमुच समय पूर्णतः बदल चुका है |"क्या असल में इस वक्त ने अपनी रूह को बदला है?

यदी सच्चाई की गहराई में ताका जाए, तो ग्यात होता है कि वक्त तो वैसा ही है जैसा सदियों पहले हुआ करता था-दिन और रात्री का समय अब भी समान ही है |बदला है तो मुनष्य, उसका मन, उसकी भावनाएँ, उसके आर्थिक गुण और संपूर्ण स्वभाव |

आज का मानव उन्नति के पथ पर बहुत आगे बढ़ चुका है, इसमें कोई संकोच नहीं|किंतु इस यंत्र-युग में मनुष्य भी यंत्र जैसा व्यवहार कर रहा है |वह अपनी मानवोचित...