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दिल की बात...
अक्सर हम ज़माने के डर से , अपनो को खोने के डर से अपने उस दिल की बात को भूल जाते है जिसकी धड़कनों ने हमे जीवित रखा है। हर किसी की अपने दिल की बात होती है , जिसे हर कोई कह नहीं पाता , वो बातें एक आखिरी ख़त के तरह जाने कहा गुम जाती है।वो आखिरी ख़त जिसका कोई ठिकाना नहीं , कोई पता नहीं।ज़िन्दगी में कई लम्हे गुज़र जाते है।पहले अपनो की हर बात पे हामी भरते है,ताकि उनका दिल ना दुखे ,और अपने दिल को एक ठेस दे जाते है।फिर जब उम्र अपनी उचाईयों को छू ने लगता है तो समाज की रिवायतें जिनसे हम बंध जाते है , बेरिया पर जाती है हमारे शब्दों को हम चुप से बैठे रह जाते है ,और दिल को मौन कर जाते है।और फिर होता वहीं है जो हमारे दिल को नामंजूर होता है।जिस दिन अपने दिल को मौन कर दिया जाता है ,उस दिन एक इंसान अपना अस्तित्व खो बैठता है ,क्योंकि आपके दिल की इच्छा आपकी इच्छा होती है और जब आपको किसी और के अधीन हो कर कुछ करना परे ,तो कैसा अस्तित्व!!!?ज़िन्दगी के आखिरी मोड़ पर खड़े हम बस सोचते रह जाएंगे ....!!की जब शरीर मेरा था ये जान मेरी थी !! तो किसी और ने कैसे अपने सोच को इसपे हावी होने दिया!!!और फिर शरीर की ज्वाला इसी सोच में एक दिन जल जाएगी...!!
किसी और के अधीन होकर पूरी ज़िन्दगी गुजारने से बेहतर अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर आधी ज़िन्दगी जिए। कोई मलाल तो नहीं रहेगा...तो हमे आखिरी खत नहीं एक ऐसा किताब बनना है जिसकी अपनी एक पहचान होती ,अपना अस्तित्व हो , जिसे लिख कर हमारी आधी ज़िन्दगी भी मुकम्मल हो।एक ऐसा किताब जो बाद मरने के भी हमे जीवित रखेगा , कहानी की तरह हर किसी की ज़ुबान पर होंगे।
दिल की बात सुने...एक नया आयाम मिलता है जीवन को।