...

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...जीने को और क्या चाहिए

उब गई हूँ एक रस जिन्दगी से दिनभर घर में पड़ी रहती हूं
बहू अपने कमरे में चली जाती है ! न बोलना न चालना बस खट रही हूँ वाकई सास का जमाना चला गया ।
राधा ने अपनी पड़ोसन सीता को जोर से सुनाते हुए कहा ।

दीदी घर घर का यही हाल में मेरी बहू तो सुबह से ही काम पर निकल जाती है छोटे मोटे सारे काम राम राम कर मैं ही
निपटाती हूँ कुछ कहो तो इस कान से सुन उस कान से निकाल देती है ।क्या करें जीना तो है ।
मैं तो उतना ही करती हूँ जितना बन पड़ता है मुझसे सीता ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा ।
अभी कल ही की तो बात थी मेरा मन हुआ कि महाराज श्री की कथा में जाऊं पर नहीं समय ही नहीं ,टीव्ही में देखना मुझे अच्छा नहीं लगता ।
कुछ बनाने खाने की बात हो तो बजट का रोना शुरू हो जाता है क्या करें क्या नहीं ।
तीर्थाटन तो लिखा ही नहीं भाग्य में ,मंदिर दर्शन भी हो जाए यही कहाँ हो पाता है ?

तुझे दिख रहा है मेरी अवस्था क्या काम करने की है और
महारानी के आराम करने की ।मुझसे नहीं होगा ये सब तुझे मालूम है मेरी भी इच्छाएं हैं मेरी भी भावनाएं है मुझे जीने को और क्या चाहिए भगवद् भजन थोड़ा चलना फिरना ,कभी कभार दावत या घर का बना पक्का,गरिष्ठ भोजन और प्यार की दो बाते बस । पर नहीं उन्हें तो फुरसत ही नहीं हमसे बात करने की ।कुछ कहो तो काटने दौड़ती है अब तो मेरा बेटा भी अनदेखी करता है मेरी।

(यह इनका रोज का प्रलाप है यही इनकी सभा में मथे जाते हैं विष भी अमृत भी वाणी से निकलता है इनकी सभा में )

(सरिता बहू मौन रहकर बहुत कुछ सुनती है इनकी आलाप प्रलाप से वह भलीभाँति वाकिफ़ है ।
इसलिए बिगाड़ के डर से ,मर्यादा के विचार से या पारिवारिक संस्कार के कारण अपनी सास के सामने मुँह नहीं खोलती फ़कत मौन रहकर सब सुनती है सहती है ।)

इसी तरह दिन बीत रहे थे ! समय का पहिया अपनी गति से
चल रहा था ।
एक दिन बाजार में अभय को उसके बचपन का मित्र राकेश मिला । वह भी उसी शहर में स्थानान्तरित होकर आया था ।
अभय राकेश से मिल बहुत प्रसन्न हुआ । दोनों में खूब बाते हुई ।बचपन की खट्टी मीठी यादों के पिटारे को खोलकर एक एक याद ताजा करने लगे ।
अभय ने कहा यही पास में तो मेरा घर है मित्र चलो ! वही बैठकर बाते करेंगे । वे दोनो वहाँ से अभय के घर की ओर चल दिए ।रास्ते में अभय ने कुछ मिठाई ,नमकीन,फल आदि भी खरीद लिए । थोड़ी देर बाद वे घर पहुँचे ।

इनका बजट बिगड़ जाता है अपनी बूढ़ी माँ के लिए नहीं अपने परिवार दोस्तों के लिए इनका बजट खराब नहीं होता , पैसे बचाने का खयाल रफूचक्कर हो जाता है ।
खाओं बेटे , कमाओ बेटे तुम्हारा ही है सभी कुछ बिना संकोच खाओं ,खिलाओं ,
माँ को छोड़ क्यों नहीं देते किसी वृद्धाश्रम में सभी रोकटोक से बच जाओगे ।

अभय राकेश को साथ लेकर बिना कुछ बोले बैठक में चला गया वहाँ बैठने के बाद भी माँ का बोलना जारी रहा ।वातावरण विषाक्त हो गया था ।जैसे तैसे जलपान की औपचारिकताएँ पूरी हुई ।

सारी बाते कान तक आ रही थी । अभय ने राकेश को कहा यार ! कितना ही प्रयास करूँ माँ समझती ही नहीं क्या करूँ
बहुत सोचता हूँ क्या हिमालय चला जाऊँ ,सरिता को पीहर छोड़ आऊँ या .…
राकेश -- नहीं ! नहीं !! अभय ऐसा सोचना भी नहीं ।
बस जनरेशन गेप को समझना होगा, माँ की भावनाओं का
सम्मान करना होगा ।छोटी से छोटी बात उनसे शेयर करें,
उनकी सम्मति लें ,उनसे पूछे मम्मीजी क्या चल रहा है ,
आपको कोई तकलीफ तो नहीं ।बाजार जा रहा हूँ आपके लिए क्या लाऊँ ।

सोचो ! माँ चौथेपन में प्रवेश कर चुकी है उनका मन बिल्कुल
बच्चों सा हो गया है ।उन्हें अकेलापन खलता है अपनों के होते हुए ,अपनों के पास होते हुए ,एक छ्त के नीचे रहते हुए
वे अलगाव,दुराव महसूस कर रही है तुम्हें इसी खाई को पाटना है अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर ।
मैं मानता हूँ ,यह कठिन है ,मगर असंभव नहीं ।आप दोनों
को सोचना होगा मनन चिन्तन कीजिए नये परिवर्तन की
शुरुआत कीजिए ।
अपनी ख़ुशी अपने ग़म उनसे भी साझा करें उन्हें पराया न समझे ,उनसे पर्दा न करें ,बस दो बोल मीठे ही तो बोलना है
वृद्धजन तो भाव के ही तो भूखे ,उन्हें अपना प्यार दीजिए ।
मित्र आत्मीयता ,विश्वास ,सम्मान ,सहानुभूति ही वो
पारस है जो जीवन को स्वर्णिम ख़ुशहाली ,मन की शांति ,
कामयाबी प्रदान कर सकती है ।
जीने को और क्या चाहिए अपनों का प्यार , अदद विश्वास
समानुभूति और क्या ?
राकेश ने बातों ही बातों में जीने की सही राह दिखा दी ।
उसने तय किया मैं जरूर चलूँगा जरूर चलूँगा तुम्हारी दिखायी राह !!

-MaheshKumar Sharma
25/12/2022

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