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परमेश्वर ही हमारे भोजन का प्रबन्ध करता है।
दाना - दाना पर लिखा है खाने वाले का नाम । यह एक कहावत है। पुराने लोग जो आस्तिक होते थे। वे यही मानते थे कि अगर किसी के भाग्य में दाना पानी लिखा हुआ है ।तो इंसान चाहे जहां हो उसे वह दाना पानी मिल ही जाता है। परमेश्वर ने सभी के लिये हर चीज की व्यवस्था कर रखी है। जैसे जंगल में रहने वाले एक हाथी को एक मन रवाना चाहिये तो उसका भी पेट भरता है । और एक चींटी को मात्र एक कण चाहिये तो उसका भी पेट भरता है। यह सारी व्यवस्था उस परमेश्वर की बनाई हुई है।
एक समय की बात है। एक कुत्ता जो किसी व्यक्ति नें पाल रखा था। उसका नाम मोती था। मोती का मालिक एक हलवाई था। वह मोती से बेहद प्यार करता था। वह मोती के लिये प्रति दिन उसके पंसद का भोजन का प्रबन्ध किया करता था। मोती का दाना पानी शायद उसके मालिक के साथ लिखा हुआ था । एक दिन मोती के मालिक की हार्ट अटैक से मृत्यु हो जाती है। अब मोती को उसके बच्चे घर में नही रखना चाहते थे । सब ने मिलकर मोती को निकाल दिया। मोती भटकता हुआ एक खाली प्लाट के पास पहुंचा ' जहां एक कुटिया बनी हुई थी। उस कुटिया में एक महिला रहा करती थी। मोती उस कुटिया के पास बैठा रहता था ' । भुखा प्यासा मोती सोचने लगा। "कि शायद मेरे मालिक के यहां मेरा दाना पानी कुछ समय के लिये ही लिखा था । तभी तो समय पुरा होते ही मुझे घर छोड़ना पड़ा शायद मेरे नसीब में किसी और के हाथ का भोजन लिखा है। " कुटिया में रहने वाली महिला के हाथों रोज भोजन ज्यादा बनने लगा और वह बाहर बैठे मोती को बचा हुआ भोजन डालने लगी। महिला ने मन ही मन में विचार किया ।कि इस कुत्ते के हिस्सा का भोजन बच रहा है। शायद पीछे जनम में इसने मुझे खिलाया होगा। तभी तो जब से यह यहां आया है। मुझसे भोजन ज्यादा बनाने में आ रहा है। और प्रभु की इच्छा समझकर महिला मोती की देखरेख करने लगी। मोती भी कुछ दिन महिला की कुटिया में बिताकर मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस संसार में आने से पहले ही हमारे जीवन निर्वाह का प्रबन्ध ऊपर वाला कर देता है। हम तो निमित मात्र है।
शिक्षा - हमारे खाने पीने की व्यवस्था किसी और के द्वारा की गई है । हमें तो हमारे कर्म पर ध्यान देना चाहिये । भगवान किसी भी प्राणी को भुखा नही सुलाता है।

© shakuntala sharma