जुलूस
जुलूस
वह दफ़्तर के लिए घर से निकल ही रहा था कि तभी रसाईघर से माँ की आवाज आयी।दरअसल,जल्दबाजी में वह टिफ़िन रखना भूल गया था। माँ टिफिन बाॅक्स लेने के लिए बुला रही थी।रसोईघर में गया तो देखा माँ रोटियाँ सेंक रही थी।जबसे शांता बीमार पड़ी थी,ग़जब की फुर्ती आ गयी थी उसमें।उसने माँ के चेहरे पर एक नजर डाली..शांत सौम्य चेहरे की कांति...उम्रदराज चेहरे पर चिंता की हल्की लकीरें..चूल्हे की आँच से दमकता चेहरा,इन सबका मिश्रित भाव एक चित्रमय कोलाज की तरह ! टिफिन का डब्बा बैग में रख जब चलने को हुआ, तभी ख्याल आया कि आज शाम डाॅक्टर के पास भी जाना था मगर वह प्रेशक्रिप्सन रखना ही भूल गया था।वह कुछ झल्लाया हुआ फिर से कमरे में दाखिल हुआ।उन्हें फिर से आया देख कर शांता ने तनिक विस्मय से करवट लेते हुए पूछा-अब क्या है ? -तुम्हारा वो प्रेशक्रिप्सन, अलमारी में ढूंढते हुए कहा। तीन रैकोंवाली अलमारी में दुनिया भर की चीज़ें ठूंसी हुई थीं।सिर्फ उपरी खंदे के एक कोने में कुछ किताबें करीने से रखी थीं।उनके साथ कोई छेड़छाड़ उसे कतई बर्दाश्त नहीं होती।
काफी ढूंढ़ लेने के बाद भी जब वह पर्ची नहीं मिली तो पत्नी ने कहा-आज रहने दो कल चले जाना। वैसे भी कहाँ फायदा है इस इलाज से। फिर एक लंबी सांस खींचते हुए बोली-यहाँ तो दिखाना ही फिजूल है।उसने शांता की ओर देख कर मानो खुद से ही कहा-और कोई उपाय भी क्या है। शांता को अचानक इस बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया, तमक कर बोली-लोग क्या बाहर नहीं जाते ?जब कोई जवाब नहीं सूझा तो कातर नजरों से उसने बीमार शांता को देखा।सब कुछ जानते हुए भी उसका इस तरह से सवाल करना उसे नागवार लगा था।सोचने लगा..उसे क्या नहीं पता उनकी माली हालत के बारे में ..इतनी कम तनख्वाह में इतनी बड़ी गृहस्थी का...
वह दफ़्तर के लिए घर से निकल ही रहा था कि तभी रसाईघर से माँ की आवाज आयी।दरअसल,जल्दबाजी में वह टिफ़िन रखना भूल गया था। माँ टिफिन बाॅक्स लेने के लिए बुला रही थी।रसोईघर में गया तो देखा माँ रोटियाँ सेंक रही थी।जबसे शांता बीमार पड़ी थी,ग़जब की फुर्ती आ गयी थी उसमें।उसने माँ के चेहरे पर एक नजर डाली..शांत सौम्य चेहरे की कांति...उम्रदराज चेहरे पर चिंता की हल्की लकीरें..चूल्हे की आँच से दमकता चेहरा,इन सबका मिश्रित भाव एक चित्रमय कोलाज की तरह ! टिफिन का डब्बा बैग में रख जब चलने को हुआ, तभी ख्याल आया कि आज शाम डाॅक्टर के पास भी जाना था मगर वह प्रेशक्रिप्सन रखना ही भूल गया था।वह कुछ झल्लाया हुआ फिर से कमरे में दाखिल हुआ।उन्हें फिर से आया देख कर शांता ने तनिक विस्मय से करवट लेते हुए पूछा-अब क्या है ? -तुम्हारा वो प्रेशक्रिप्सन, अलमारी में ढूंढते हुए कहा। तीन रैकोंवाली अलमारी में दुनिया भर की चीज़ें ठूंसी हुई थीं।सिर्फ उपरी खंदे के एक कोने में कुछ किताबें करीने से रखी थीं।उनके साथ कोई छेड़छाड़ उसे कतई बर्दाश्त नहीं होती।
काफी ढूंढ़ लेने के बाद भी जब वह पर्ची नहीं मिली तो पत्नी ने कहा-आज रहने दो कल चले जाना। वैसे भी कहाँ फायदा है इस इलाज से। फिर एक लंबी सांस खींचते हुए बोली-यहाँ तो दिखाना ही फिजूल है।उसने शांता की ओर देख कर मानो खुद से ही कहा-और कोई उपाय भी क्या है। शांता को अचानक इस बात पर थोड़ा गुस्सा आ गया, तमक कर बोली-लोग क्या बाहर नहीं जाते ?जब कोई जवाब नहीं सूझा तो कातर नजरों से उसने बीमार शांता को देखा।सब कुछ जानते हुए भी उसका इस तरह से सवाल करना उसे नागवार लगा था।सोचने लगा..उसे क्या नहीं पता उनकी माली हालत के बारे में ..इतनी कम तनख्वाह में इतनी बड़ी गृहस्थी का...