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अनकही मुलाकात...
मेरे द्वारा लिखित यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटनाओं से मेल नहीं खाती है।यह कहानी पूर्णतः मौलिक व स्वरचित है। इसके सभी पात्र, घटनाएं व दृश्य की नकल करना सेक्शन 13, कॉपीराईट एक्ट 1957 के अंतर्गत चोरी माना जायेगा। इसमें वर्णित सभी पात्र और घटनाएँ लेखक की कल्पना से सृजित हैं और किसी भी वास्तविक व्यक्ति या स्थिति के प्रतिनिधि नहीं हैं।
किसी भी प्रकार की समानता केवल संयोग हो सकती है।
कृपया इस कहानी के किसी भी भाग की पुनरावृत्ति, वितरण, या प्रकाशन से पहले संबंधित स्वत्वाधिकार और अनुमतियों की जांच करें। यह कहानी किसी भी प्रकार के कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं करती है और लेखक इसके सभी अधिकार सुरक्षित रखता है।

(- दृश्यो की कल्पना करे और कहानी का मजा ले । )

**दृश्य 1: कैफ़े** 
*अंदरूनी दृश्य – आरामदायक कैफ़े – देर दोपहर*

कैफ़े में हल्की धूप अंदर आ रही है। **माया** (25 वर्ष), एक मध्यमवर्गीय लड़की, अपने काम में व्यस्त है। उसकी मुस्कान बहुत प्यारी है, जिससे हर कोई उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। वह विनम्र और मीठी है, लेकिन अपने आत्म-सम्मान और थोड़े से अभिमान से कभी समझौता नहीं करती। ग्राहकों से उसका स्वाभाविक व्यवहार बहुत ही कोमल और आदरपूर्ण है।

तभी एक काली, चमचमाती लग्ज़री कार कैफ़े के बाहर आकर रुकती है।

**दृश्य 2: अर्जुन का प्रवेश** 
दरवाज़े की घंटी बजती है और **अर्जुन** (30 वर्ष), एक अमीर, घमंडी व्यवसायी, अंदर आता है। उसका लिबास एकदम परफेक्ट है, और उसकी शख्सियत में अहंकार साफ झलकता है। वह इधर-उधर देखे बिना सीधा काउंटर की ओर बढ़ता है।

**अर्जुन** (गुस्से में): 
"एक एस्प्रेसो। जल्दी लाओ।"

माया, जो अभी दूसरे ग्राहक को सर्व कर रही है, अर्जुन की ओर एक हल्की नज़र डालती है, लेकिन उसके रूखे व्यवहार को नज़रअंदाज़ करते हुए अपना काम करती रहती है।

**माया** (शांत, बिना उसे देखे): 
"यहाँ लाइन है। थोड़ा इंतज़ार कीजिए।"

**अर्जुन** (चौंक कर, गुस्से में): 
"तुम जानती हो मैं कौन हूँ?"

**माया** (विनम्र लेकिन दृढ़): 
"यहाँ हर कोई कोई न कोई है, सर। मैं आपको थोड़ी देर में सर्व कर दूँगी।"

अर्जुन के लिए यह एक अनपेक्षित जवाब होता है। उसे झटका लगता है कि एक कैफ़े वर्कर ने उसे नजरअंदाज़ कर दिया। गुस्से में, वह थोड़ा पीछे हट जाता है, लेकिन ज्यादा बवाल नहीं करता।

**दृश्य 3: तनाव बढ़ता है** 
जब माया सभी ग्राहकों को सर्व कर लेती है, तब वह आखिरकार अर्जुन की ओर देखती है।

**माया** (हल्की मुस्कान के साथ): 
"अब आपका ऑर्डर?"

**अर्जुन** (चिढ़ा हुआ, गुस्से में): 
"एक एस्प्रेसो। और इस बार जल्दी।"

माया बिना उसकी बात का असर लिए, कॉफ़ी बनाने लगती है। अर्जुन वहीं खड़ा-खड़ा बेसब्री से उँगलियाँ टेबल पर थपथपाता है, माया के शांत और सधे हुए स्वभाव को देखते हुए। यह बर्ताव उसके लिए बिल्कुल अप्रत्याशित था।

माया एस्प्रेसो लेकर लौटती है और कप काउंटर पर रख देती है।

**माया** (विनम्रता से): 
"ये लीजिए। $4।"

अर्जुन अपना बटुआ निकालता है और अपने पैसे का दिखावा करते हुए, $100 का नोट काउंटर पर रख देता है।

**अर्जुन** (मुस्कुराते हुए): 
"बाकी रख लो।"

माया एक नज़र नोट पर डालती है, फिर अर्जुन की ओर देखती है। उसकी मुस्कान जस की तस रहती है, लेकिन उसकी आँखों में अब एक ठंडक दिखने लगती है। बिना नज़र हटाए, वह नोट उठाती है और $96 गिनकर अर्जुन के सामने रख देती है।

**माया** (शांत लेकिन दृढ़): 
"मुझे इतना बड़ा टिप नहीं चाहिए। सम्मान पैसों से नहीं मिलता।"

अर्जुन पहली बार थोड़ा हैरान दिखाई देता है। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा थोड़ी देर के लिए फीका पड़ जाता है। दोनों के बीच तनावपूर्ण खामोशी छा जाती है। माया की आँखों में जो ठंडक है, वह अब स्पष्ट दिखने लगी है, जबकि अर्जुन अब भी अपनी झुंझलाहट पर काबू करने की कोशिश कर रहा है।

**दृश्य 4: एक बदलाव** 
अर्जुन आखिरकार अपना चेंज उठा लेता है, लेकिन जाने के बजाय वहीं खड़ा रहता है।

**अर्जुन** (थोड़ा उत्सुक, झुकते हुए): 
"तुम अलग हो। ज़्यादातर लोग शुक्रिया कहते।"

**माया** (मुस्कुराते हुए, बिना डरे): 
"मैं ज़्यादातर लोगों जैसी नहीं हूँ।"

अर्जुन का घमंड थोड़ा नरम पड़ जाता है। माया के शांत स्वभाव ने उसे हिला दिया है, लेकिन वह इसे स्वीकार नहीं करेगा। अब उसकी आँखों में थोड़ी इज्ज़त दिखने लगती है।

**अर्जुन** (थोड़ा गंभीर होकर): 
"तुम्हारा नाम क्या है?"

**माया** (विनम्रता से): 
"माया। लेकिन इस बातचीत के लिए नाम की क्या ज़रूरत है?"

अर्जुन हल्का-सा हंसता है, माया की बेबाकी से हैरान होते हुए। उसकी मुस्कान वापस आती है, लेकिन अब उसमें थोड़ा सम्मान भी झलकता है। वह अपना चेंज जेब में डालता है, माया को एक आखिरी नज़र से देखता है, और दरवाजे की ओर बढ़ जाता है।

जैसे ही वह बाहर निकलता है, माया उसके पीछे देखती है, उसकी मुस्कान हल्की पर स्थिर रहती है। उसकी आँखों में एक अजीब सा आत्मविश्वास है—शायद कुछ ऐसा जो अर्जुन नहीं समझ पाया।

**दृश्य 5: अर्जुन के विचार** 
*बाहर का दृश्य – कैफ़े के बाहर – देर दोपहर*

अर्जुन अपनी कार के पास खड़ा होता है, कैफ़े के दरवाजे को देखते हुए। उसके दिमाग में वह मुलाक़ात बार-बार घूम रही है। वह आमतौर पर सब कुछ अपने नियंत्रण में रखने वाला इंसान है, लेकिन माया ने उसे अनजाने में ही उसके कम्फर्ट ज़ोन से बाहर कर दिया था।

वह खुद से हल्की-सी मुस्कान के साथ कहता है।

**अर्जुन** (अपने आप से, विचारमग्न): 
"माया।"

वह अपनी कार में बैठता है, लेकिन इंजन चालू करने से पहले एक पल के लिए रुकता है, अब भी माया के बारे में सोचते हुए।

जैसे ही वह कार चलाकर दूर चला जाता है, कैमरा कैफ़े पर रुक जाता है, जहाँ माया अब भी खिड़की के पीछे अपना काम करती हुई दिखती है। उसकी मुस्कान अब भी वैसी ही हल्की और शांत है, जैसे वह कुछ जान चुकी हो जो अर्जुन नहीं समझ पाया।

जारी...


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