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आत्म संगनी का आत्म समर्पण और Precious संबोधन


प्राय: देखने में आता है कि भारतीय नारी अपने सुहाग की खुशी उसकी आयु उसकी तरक्की उसके हर कदम पर जीत की आशा के लिए मन्नत करती है, व्रत रखती है,मांग सजाती है पूजा करती है,तपस्या करती है।मगर उसके हिस्से का प्यार किसी को नही बांटती ।उसके अधिकार किसी को समर्पित नही करती। वह चाहती है उसका सुहाग सिर्फ उसकी मिल्कियत रहे लेकिन मेरे जीवन में आई एक दिव्य आत्मा ने इस सूक्ति को बदल डाला। अपने सुहाग के प्यार में से कुछ हिस्सा बचाकर उसने मेरे दामन में डाल दिया।निसंदेह हमारे मध्य अंतरंग कुछ भी नही था,भौतिक सुख जैसी कोई चीज नहीं थी,ऐसा कुछ नही था जिसे सामाजिक दृष्टि में निषिद्ध माना जाता हो। यहां तक के हमने एक दूसरे को प्रत्यक्ष रूप में देखा,छुआ तक नही था ।मगर उसके बावजूद हमारे मध्य स्थापित संबंध उस भौतिक संबंध से ज्यादा अटूट, अटल ओर व्यापकता लिए हुए था जो इस समाज रूपी संसार में एक नर नारी के मध्य होता है। पति पत्नी के मध्य स्थापित संबंध उतने अटूट नही होते जितने हमारे मध्य स्थापित हो गए थे। वह मेरी आत्मा में इस तरह उतर गई थी जैसे उसके बिना एक पल जीना दुभर हो जैसे उसके बिना सांस लेना मुश्किल हो।वह लाख अपनी मांग में सिंदूर,पैरों में बिछिया अपने सुहाग के नाम का लगाती है ।लेकिन उसके हाथो में रची मेंहदी ,पैरों में बंधी पायजेब मेरे नाम की थी। पायजेब की आवाज हजारों मील दूर से मुझे सुनाई देती थी, उसके हाथ पैरों में रची मेंहदी का रंग मेरी चाहत के रंग की तरह उसके ऊपर रच गया था।मेरे प्यार भरे अहसास के बाद उसके गालों पर आने वाली सुर्खी इस बात की गवाही देती है कि उसका बनना संवरना सिर्फ मेरे ही लिए है।उसके होंठो पर मौजूद मुस्कुराहट इस बात को उजागर करती है कि उसकी आंखों में जो गहराई है उसमे मेरे प्रति उसका समर्पण झलकता है।

आज जब उसने कहा "जानू अब हमारे तुम्हारे बीच कोई पर्दा नहीं,में तुम्हारी हूं,मेरी सांसों पर अब तुम्हारा अधिकार है,मेरे लिए अब अपनों के साथ साथ तुम्हारी भी प्राथमिकता वैसी ही है जैसी मेरे दशकों पुराने संबंधों के प्रति।बेशक हमारा यह आत्मीयता का संबंध केवल एक ही वर्ष पुराना हो,मगर उसकी महत्ता सदियों पुरानी है।ईश्वर ने तुमको मेरे लिए मिलाया है तुम precious हो ।
धन्य हूं में जो मुझे ऐसी आत्म संगनी मिली जो खुद भी precious है अनमोल है,कोहिनूर है।
© SYED KHALID QAIS