...

2 views

संक्रांति काल - पाषाण युग १०
>>>>>>>>

हाँ ,अम्बी कुछ भी कर सकती है ....हम नहीं जाएंगे अपनी गुफा छोडकर ....यही रहेंगे... हम मुकाबला करेंगे उन पिशाचों का ...!" जादौंग दृढता के साथ बोल रहा था।
अम्बी ने जादौंग के अधरों पर अपने अधर टिका दिए.......।

आकाश मे भोर के पंछियों का कलरव होने लगा ....दो जिस्म जो  अभी तक जुडे हुए थे , एकदूसरे से पृथक हुए ,और जलाशय की ओर चल पडे। आज बहुत सारी तैयारियां करनी थी उन्हें .....। गुफा द्वार से दो डबडबाई आँखें उन्हें दूर जाते देख रही थी .....हाँ ,वो सारकी थी।


अब आगे की कहानी :----

प्रेम की नई कौंपलें

गौरांग एक झटके से उठकर बैठ गया ,सारकी के ठंडे स्पर्श ने चौंका दिया था उसे । सारकी का सामीप्य हमेशा से उसे गुदगुदाता था ।सारकी को शायद इसका आभास पहले ही था वो जानती थी कि गौरांग दिल मे उसे पसंद करता है बस जादौंग के भय से कभी हाथ नहीं बढ़ाया।

सारकी इतने समय के साथ मे ये जान चुकीथी कि जादौंग अम्बी की जगह किसी को नहीं देगा , उसने देख लिया था कि किसी से बात ना करने वाला जादौंग अपनी गहरी से गहरी बात अम्बी से साझा करता ही है।

गौरांग के आने पर सारकी को लगा था कि तीनों का अतीत एक होने की वजह से जादौंग शायद अम्बी को साथ मे नही लेगा ,मगर अब उसे यकीन हो चुका था कि जादौंग भले ही उसकी संतानों का पिता होने का कर्तव्य निभा रहा है और अपने ईमानदार स्वभाव के चलते कभी कभी उसके साथ सो लेता है और उसे खुश रखने के लिए संसर्ग भी कर लेता है... मगर अम्बी पर जो अधिकारपूर्ण प्रेम है उसका वो कभी किसी और से नहीं बाँटेगा । तभी तो अम्बी कितनी सहजता से ले लेती  है जादौंग का उसके पास आना ,उसे स्पर्श करना ....।

सारकी तय कर चुकी थी की उसे भी एक ऐसा पुरुष चाहिए जिस पर वो एकाधिकार जता सके और उसके लिए गौरांग से उपयुक्त पुरुष और कौन होता । गौरांग की निगाहें भी तो इस चाहत को बल दे रही थी । गौरांग के आने से जादौंग पर एकाधिकार की ना पूरी होने वाली उसकी लालसा क्षीण होकर अब समाप्त होगई थी।

जब गौरांग को बेसुध हालत मे अम्बी लेकर आई थी तब सारकी को पहली बार गौरांग के प्रति करुणा और आकर्षण के भाव उत्पन्न हुए थे ...उसे हृदय से चिंता हुई थी गौरांग के लिए , ऐसे ही तो आँखों से पानी नहीं छलकता ना किसी के लिए , कोई अहसास जरूर होता है ।

और अहसास था..कारण भी था उस अहसास का ......सारकी को गौरांग के द्वारा बिना किसी आशा के निश्छल मन से उसके साथ खडे रहना याद आया जबकि जादौंग का तो कबीले से निष्कासन हो चुका था। ऐसे में भी मुखिया के विरुद्ध जाकर उसका साथ देने की हिम्मत...