लोकप्रिय भारतीय संस्कृति में रामायण के पात्रों और घटनाओं का स्थायी प्रभाव
"रघुकुल रीत सदा चली आयी,
प्राण जाये पर वचन न जायी"
भारतीय संस्कृति पर रामायण के पात्रों और घटित विभिन्न घटनाओ का बहुत प्रभाव आज भी है जिसके कारण ही भारतीय संस्कृति और परंपरायें विश्वभर में लोकप्रिय है।मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन पर महाकाव्य भारतीय समाज मे आदर्श व्यवहार के प्रचलन स्थापित करने के उद्देश्य से रामायण की रचना हुई है जो समस्त भारतीयों के लिए आदर्श जीवन,सामाजिक विचार,जन कल्याण,रिश्तों का महत्व,मित्र और शत्रु को समान महत्व,समाज मे महिलाओं को उचित मान सम्मान देना।
भारतीय संस्कृति में किसी को दिए वचन को पूर्णतः निभाना यह भावना राजा दशरथ के कैकई की अभिलाषा पूर्ण करने का वचन के परिणाम स्वरूप श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राजा बनने का आदेश राजा दशरथ को देना पड़ा। पिता के हर आदेश का पालन करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है श्री राम पिता दशरथ के आदेश व माता कैकई की अभिलाषा को सहर्ष स्वीकार कर चौदह वर्ष का वनवास बिताने को सहमत हो जाना। जैसी पुरातन परंपरा हैं कि सुख-दुख में सदा अपने पति का साथ निभाने की संस्कृति सीता द्वारा श्री राम के साथ वनवास जाने का प्रण लिया।अपने बड़े भाई का विपत्ति में साथ न छोड़ना इस आदर्श को लक्ष्मण ने श्री राम व सीता संग वनवास को स्वीकार किया। बड़े भाई का अधिकार पर अतिक्रमण न करना यह सांकृतिक विचार के परिणाम स्वरूप भरत ने श्री राम की चरण पादुका को सिंहासन में रख कर पूर्ण सेवा भाव से राजकीय कार्य किया और उचित समय आने पर सहर्ष ही राजपाट श्री राम के चरणों मे अर्पित कर दिया।
श्री राम द्वारा अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ति हेतु स्वर्ण मृग के शिकार के लिए जाना अपनी पत्नी की इच्छा का सम्मान करना सिखाता है।
श्री राम की आवाज में जब मायावी मरीचिका मदद को पुकार लगाता है तो लक्ष्मण द्वारा उनके मदद को जाना अपने भाई का साथ विपत्ति नही छोडने की भारतीय संस्कृति का उदाहरण है। लक्ष्मण द्वारा राम की पुकार पर जाने के पहले पंचवटी के पारित लक्ष्मण रेखा का खिंचा जाना और सीता द्वारा उसे लांघना यह दर्शाता है कि महिलाओं द्वारा मर्यादा के सीमा को पार करने से आपके चरित्र का अपहरण हो सकता है।
आपने मित्र का साथ निभाने और उसके अधिकार को दिलाने की भावना श्री राम द्वारा बाली का वध किया जाना है जिसने सुग्रीव से उसकी पत्नी व उसका राजपाठ छीन लिया था। शबरी के झूठे बेर श्री राम द्वारा ग्रहण करना भक्ति से भक्त की किसी भी वस्तु को स्वीकार करना भेंट की वस्तु में भेंट देने वाले कि भावना महत्वपूर्ण है न कि उसकी भेंट की जाने वाली वस्तु का मूल्य भारतीय संस्कृति में स्वागत में दी गयी प्रत्येक वस्तु को स्वीकार कर धन्यवाद अर्पित करने का भाव समाहित है।पाषाण बनी देवी अहिल्या का कल्याण करना व उसका उद्धार करना भारतीय संस्कृति में अपने शरणागत को कष्ट से मुक्त करने की भावना होती है कोई हमारे पास से निराश होकर न लौटे। अपने स्वामी के हर आदेश का पालन प्रतिकूल परिस्तिथि में भी पूर्ण करना यह हनुमान के समुद्र लाँघने से चरितार्थ है। सीता की खोज में वन वन भटकना पत्नी के प्रति अथाह प्रेम भाव रखना। सीता का यह विश्वास की एक दिन श्री राम उन्हें लेने आएंगे उसे रावण के अनेकों बार डराने पर भी नही डगमगाया। पति-पत्नी के अथाह प्रेम व अटूट विश्वास भारतीय संस्कृति का परिचायक है।
वानर सेना के साथ समुद्र पर सेतु का निर्माण इस बात का परिचायक हैं कि सच्चे मन और अटूट श्रद्धा से असंभव कार्यों को भी सम्भव किया जा सकता है। श्री राम का वानरों रीछों की सेना लेकर रावण की विशाल सेना को युध्द में पराजित करना अच्छे कार्य अंत मे सफलता को प्राप्त करते है।
रावण के युध्द में पराजित होने पर उसके अंतिम क्षणों में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को रावण से राजनीति ज्ञान का लाभ अर्जित करने भेजना यह दर्शाता है कि शत्रु की ज्ञान क्षमता और उसकी शक्ति का सदैव सम्मान करना चाहिए। वनवास पूर्ण होने के उपरांत श्री राम द्वारा किये गए राजकीय कार्यों आज भी आदर्श मान कर राम राज्य की परिकल्पना की जाती है जिसमे सभी सुखी व समृद्ध रहे,जनता को जीवन यापन में कोई भी समस्या न आये। गुरुजनों,ऋषि मुनियों का उचित सम्मान व उचित स्थान देना भारतीय संस्कृति में आज भी है।
रामायण महाकाव्य आज भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है आज भी अभिवादन स्वरूप राम राम,जय श्रीराम बोले जाते है। आज भी बड़े भाई को राम का स्थान और छोटे भाई को लक्ष्मण,भरत,शत्रुघन की उपमा दी जाती है। आदर्श पुत्र को राम की उपमा दी जाती है।अच्छे स्वामी भक्त के लिए हनुमान कहकर संबोधित किया जाता है। माता पिता की सेवा उनका घर मे उचित सम्मान की भावना भी रामायण से ही प्रेरित है।
मित्र और शत्रु से सामान भाव रखना और उनका सम्मान करना भी रामायण से प्रेरित संस्कृति का परिचायक है।
भारतवर्ष में प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों में भी रामायण और भगवान राम के नाम की अमिट छाप दिखाई देती है जो कि पुरातन काल में प्रचलित थी और आज भी हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
"राम की माया,कभी धूप कभी छाया"
अर्थात जीवन मे सुख-दुख आते जाते रहते है।
"राम नाम जपना,पराया माल अपना"
अर्थात अच्छे बनने का दिखावा कर छल करना।
"मुँह में राम बगल में छुरी" अर्थात मीठा मीठा बोलकर नुकसान करना।
"रामजी की चिरैया,रामजी का खेत"
"खा ले चिरैया,भर भर पेट"
अर्थात इस धरती के समस्त संसाधनों में सभी जीवों का बराबर का हिस्सा है।
"राम की लीला राम ही जाने" अर्थात सब ईश्वर की इच्छा पर है।
"राम नाम सत्य है" अर्थात इस जीवन का अंत निश्चित है राम नाम ही सर्वव्यापी है।
रामायण महाकाव्य भारत की संस्कृति है अभिन्न हिस्सा है जिसमे पारिवारिक गठबंधन,रिश्तों की मर्यादा,वचन का पालन,स्वयं की विलासिता को परे रखकर अपने अग्रज का साथ निभाना,जन मानस के कल्याण व उनके कष्टों के निवारण में कार्य करना,एक राजा के रूप में स्वयं को जनता का पालक मान कर उनकी समस्त सुख सुविधाओं को उपलब्ध कराने हेतु समर्पित रहना।
उपरोक्त परंपराएं व व्यवहार,आदर्शवाद रामायण से ही भारतीयों के मन मस्तिष्क में रची बसी है और यही परंपराएं भारतीय हिन्दू धर्म को महान बनाये रखी है।
संजीव बल्लाल © BALLAL S
प्राण जाये पर वचन न जायी"
भारतीय संस्कृति पर रामायण के पात्रों और घटित विभिन्न घटनाओ का बहुत प्रभाव आज भी है जिसके कारण ही भारतीय संस्कृति और परंपरायें विश्वभर में लोकप्रिय है।मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जीवन पर महाकाव्य भारतीय समाज मे आदर्श व्यवहार के प्रचलन स्थापित करने के उद्देश्य से रामायण की रचना हुई है जो समस्त भारतीयों के लिए आदर्श जीवन,सामाजिक विचार,जन कल्याण,रिश्तों का महत्व,मित्र और शत्रु को समान महत्व,समाज मे महिलाओं को उचित मान सम्मान देना।
भारतीय संस्कृति में किसी को दिए वचन को पूर्णतः निभाना यह भावना राजा दशरथ के कैकई की अभिलाषा पूर्ण करने का वचन के परिणाम स्वरूप श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राजा बनने का आदेश राजा दशरथ को देना पड़ा। पिता के हर आदेश का पालन करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है श्री राम पिता दशरथ के आदेश व माता कैकई की अभिलाषा को सहर्ष स्वीकार कर चौदह वर्ष का वनवास बिताने को सहमत हो जाना। जैसी पुरातन परंपरा हैं कि सुख-दुख में सदा अपने पति का साथ निभाने की संस्कृति सीता द्वारा श्री राम के साथ वनवास जाने का प्रण लिया।अपने बड़े भाई का विपत्ति में साथ न छोड़ना इस आदर्श को लक्ष्मण ने श्री राम व सीता संग वनवास को स्वीकार किया। बड़े भाई का अधिकार पर अतिक्रमण न करना यह सांकृतिक विचार के परिणाम स्वरूप भरत ने श्री राम की चरण पादुका को सिंहासन में रख कर पूर्ण सेवा भाव से राजकीय कार्य किया और उचित समय आने पर सहर्ष ही राजपाट श्री राम के चरणों मे अर्पित कर दिया।
श्री राम द्वारा अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ति हेतु स्वर्ण मृग के शिकार के लिए जाना अपनी पत्नी की इच्छा का सम्मान करना सिखाता है।
श्री राम की आवाज में जब मायावी मरीचिका मदद को पुकार लगाता है तो लक्ष्मण द्वारा उनके मदद को जाना अपने भाई का साथ विपत्ति नही छोडने की भारतीय संस्कृति का उदाहरण है। लक्ष्मण द्वारा राम की पुकार पर जाने के पहले पंचवटी के पारित लक्ष्मण रेखा का खिंचा जाना और सीता द्वारा उसे लांघना यह दर्शाता है कि महिलाओं द्वारा मर्यादा के सीमा को पार करने से आपके चरित्र का अपहरण हो सकता है।
आपने मित्र का साथ निभाने और उसके अधिकार को दिलाने की भावना श्री राम द्वारा बाली का वध किया जाना है जिसने सुग्रीव से उसकी पत्नी व उसका राजपाठ छीन लिया था। शबरी के झूठे बेर श्री राम द्वारा ग्रहण करना भक्ति से भक्त की किसी भी वस्तु को स्वीकार करना भेंट की वस्तु में भेंट देने वाले कि भावना महत्वपूर्ण है न कि उसकी भेंट की जाने वाली वस्तु का मूल्य भारतीय संस्कृति में स्वागत में दी गयी प्रत्येक वस्तु को स्वीकार कर धन्यवाद अर्पित करने का भाव समाहित है।पाषाण बनी देवी अहिल्या का कल्याण करना व उसका उद्धार करना भारतीय संस्कृति में अपने शरणागत को कष्ट से मुक्त करने की भावना होती है कोई हमारे पास से निराश होकर न लौटे। अपने स्वामी के हर आदेश का पालन प्रतिकूल परिस्तिथि में भी पूर्ण करना यह हनुमान के समुद्र लाँघने से चरितार्थ है। सीता की खोज में वन वन भटकना पत्नी के प्रति अथाह प्रेम भाव रखना। सीता का यह विश्वास की एक दिन श्री राम उन्हें लेने आएंगे उसे रावण के अनेकों बार डराने पर भी नही डगमगाया। पति-पत्नी के अथाह प्रेम व अटूट विश्वास भारतीय संस्कृति का परिचायक है।
वानर सेना के साथ समुद्र पर सेतु का निर्माण इस बात का परिचायक हैं कि सच्चे मन और अटूट श्रद्धा से असंभव कार्यों को भी सम्भव किया जा सकता है। श्री राम का वानरों रीछों की सेना लेकर रावण की विशाल सेना को युध्द में पराजित करना अच्छे कार्य अंत मे सफलता को प्राप्त करते है।
रावण के युध्द में पराजित होने पर उसके अंतिम क्षणों में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को रावण से राजनीति ज्ञान का लाभ अर्जित करने भेजना यह दर्शाता है कि शत्रु की ज्ञान क्षमता और उसकी शक्ति का सदैव सम्मान करना चाहिए। वनवास पूर्ण होने के उपरांत श्री राम द्वारा किये गए राजकीय कार्यों आज भी आदर्श मान कर राम राज्य की परिकल्पना की जाती है जिसमे सभी सुखी व समृद्ध रहे,जनता को जीवन यापन में कोई भी समस्या न आये। गुरुजनों,ऋषि मुनियों का उचित सम्मान व उचित स्थान देना भारतीय संस्कृति में आज भी है।
रामायण महाकाव्य आज भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है आज भी अभिवादन स्वरूप राम राम,जय श्रीराम बोले जाते है। आज भी बड़े भाई को राम का स्थान और छोटे भाई को लक्ष्मण,भरत,शत्रुघन की उपमा दी जाती है। आदर्श पुत्र को राम की उपमा दी जाती है।अच्छे स्वामी भक्त के लिए हनुमान कहकर संबोधित किया जाता है। माता पिता की सेवा उनका घर मे उचित सम्मान की भावना भी रामायण से ही प्रेरित है।
मित्र और शत्रु से सामान भाव रखना और उनका सम्मान करना भी रामायण से प्रेरित संस्कृति का परिचायक है।
भारतवर्ष में प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों में भी रामायण और भगवान राम के नाम की अमिट छाप दिखाई देती है जो कि पुरातन काल में प्रचलित थी और आज भी हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
"राम की माया,कभी धूप कभी छाया"
अर्थात जीवन मे सुख-दुख आते जाते रहते है।
"राम नाम जपना,पराया माल अपना"
अर्थात अच्छे बनने का दिखावा कर छल करना।
"मुँह में राम बगल में छुरी" अर्थात मीठा मीठा बोलकर नुकसान करना।
"रामजी की चिरैया,रामजी का खेत"
"खा ले चिरैया,भर भर पेट"
अर्थात इस धरती के समस्त संसाधनों में सभी जीवों का बराबर का हिस्सा है।
"राम की लीला राम ही जाने" अर्थात सब ईश्वर की इच्छा पर है।
"राम नाम सत्य है" अर्थात इस जीवन का अंत निश्चित है राम नाम ही सर्वव्यापी है।
रामायण महाकाव्य भारत की संस्कृति है अभिन्न हिस्सा है जिसमे पारिवारिक गठबंधन,रिश्तों की मर्यादा,वचन का पालन,स्वयं की विलासिता को परे रखकर अपने अग्रज का साथ निभाना,जन मानस के कल्याण व उनके कष्टों के निवारण में कार्य करना,एक राजा के रूप में स्वयं को जनता का पालक मान कर उनकी समस्त सुख सुविधाओं को उपलब्ध कराने हेतु समर्पित रहना।
उपरोक्त परंपराएं व व्यवहार,आदर्शवाद रामायण से ही भारतीयों के मन मस्तिष्क में रची बसी है और यही परंपराएं भारतीय हिन्दू धर्म को महान बनाये रखी है।
संजीव बल्लाल © BALLAL S
Related Stories