...

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एक पत्र खुद के नाम
प्रिय नम्मू,,,,

कैसी हो तुम
नाम अजीब लगा है ना तुम्हे मेरा संबोधन
कभी पुकारा नहीं है ना किसी ने इस नाम से,,,,
लेकिन मैंने देखा है तुम्हारे शरीर पर यहां वहां पेन से लिखा हुआ (नम्मू)
और देखा है पढ़कर तुम्हारा मुस्कुराना, तुम्हारे बेटे ने पुकारा तो नहीं लेकिन लिखकर दे दिया ये नाम
जब तुम अर्धनिंद्रां में होती थी पेन से लिख देता था कभी हाथ पर कभी कराई पर तो कभी पेट पर
बरसों से तुम्हें देखते हुए आ रही हूं बचपन से
चुपचाप रहने वाली लड़की वो सलोनी सी लड़की वो
बड़ी बड़ी आंखों वाली लड़की,,,,
हां अब परिपक्व हो गई है खुलकर हंसने भी लगी है और बेबाक भी हो गई है लेकिन वो बात बात पर आंखें भिगोना नहीं छोड़ा है तुमने
गुस्से में रोती हो और प्रेम में भी रोती हो ये कैसा प्रेम है तुम्हारा तो खामोश रोकर करती हो
क्या तुम्हारे इन जज़्बातों को आज तक समझा है...