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जन्मदिन
समय बीतता जाता है, वह किसी के लिए नही रूकता। समय की सुई अगर बंद भी पड जाए तब भी वह रूकता नही वह तो अपनी गति में ही चलता रहता है। समय वह गाडी है जिसकी कोई ब्रेक नही होती। समय वह धारा है जो केवल बहती रहती है इसका कोई बाँध नही होता।
जस्सी आज चौपन साल की हो गई। कैसे उसका बचपन बीता और कैसे जवानी समझा ही नही। कितने लाडलों से माँ ने पाला था, दस साल की उम्र तक हर जन्मदिन पर 30-35 लोगों की दावत कर देती थीं। फिर पच्चीस साल तक हर साल कुछ नया ही होता था। माँ के मनाए हर जन्म दिन पर कोई न कोई अलग बात थी। पता वह क्या उत्साह था।
माँ के जाने के बाद जस्सी ने ये सोचा अगर वह खुद ही अपने जन्मदिन को अपने ढंग से मनाले तो किसी से कोई अपेक्षा ही न होगी। वह अपने ढंग अपना जन्मदिन मनाने लगी। सवेरे उठ गुरूद्वारे जाती, अपनी पसंद के पकवान बनाती, इच्छा हुई तो किसी सहेली के चली जाती।पति को तो याद न रहता, वो अपने काम में ही मग्न रहते।
समय बीतता गया, बेटे को जाॉब लग गई, वह केक लाने लगा। रात के बारह बजे केक कटने लगा। शाम को होटल मे खाने लगे। कहीं बाहर घूमने जाने लगे, यह भी अच्छा बीतता गया। बहुएँ आ गईं। फिर बीमारी ने घेर लिया। अब जस्सी बाहर नही जा सकती थी।
बेटे और बहुएँ मिलकर घर पर ही अच्छा कार्यक्रम कर लेते। पर जस्सी को पता नही क्यों माँ का मनाया जन्मदिन ही याद आता, वह हर साल यही कहतीं मेरी माँ ही सबसे अच्छा मनातीं थीं। पति और बच्चे नाराज होते, सब समझती पर फिर भी कहती मेरी माँ ही अच्छा मनाती थी।
माँ के मनाए जन्मदिन में कोई स्वार्थ न था, कोई माँग न थी।गुरूघर के सेवकों को बुलाकर आशिर्वाद दिलाना, बडे-बुजुर्गों को बुलाकर आशिर्वाद दिलाना, रिश्तेदारों को बुलाकर तोहफे दिलाना, फिर सहेलियों को बुलाकर मन को खुश करवाना। पर बदले में कोई माँग न थी।
माँ का जन्मदिन ही विशेष हुआ करता था।