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"कशिश"
साबिया मन ही मन असलम को बहुत पसंद करती थी, मगर असलम साबिया के एहसासों से बेखबर था। दोनों पड़ोसी थे बचपन के साथी थे असलम बस इतना ही जानता था। इधर साबिया के मन में बचपन से ही असलम के लिए बेहद मोहब्बत थी, वो अक्सर सोचा करतीं कि बड़ी होकर वो असलम से ही निकाह करेगी।
एक दिन असलम साबिया के पास दौड़ता हुआ आया और उसे मुस्कुराते हुए बोला पता है साबिया मुझे मोहब्बत हो गई है दीवानगी की हद तक , साबिया सुर्ख़ हो उठी और हया से उसने पूछा कौन है वो "दाहाब" सुनकर साबिया बुत हो गई और उधर असलम दाहाब के हुस्न की कसीदे पढ़ने लगा, फिर असलम बोला मेरी फूफी की बहन की बेटी है कल जब फूफी के घर जाना हुआ तो वहां उससे मुलाक़ात हुई, वो भी मुझे पसंद करती है उसने कल ही मुझे बताया। साबिया अश्कों को जब्त कर असलम को मुबारकबाद देकर घर चली आई और
अपने कमरे में जाकर तकिए में मुंह छुपाकर रोने लगी उफ़ असलम तुम्हें दाहाब की मोहब्बत दिखी कभी मेरी मोहब्बत को तुमने नहीं देखा साबिया सोच सोच कर रोने लगी।
६ महीने बाद असलम और दाहाब का धूमधाम से निकाह हो गया। साबिया को भी निकाह‌ में बुलाया गया था मगर वो तबीयत नासाज बोलकर नहीं गई।
दिन गुजरते रहे और साबिया ने खुद को काम में मसरूफ कर लिया उसने पोट्री मेकिंग का कोर्स किया हुआ था तो वो वहीं करने लगी।
इस बीच एक साल गुज़र गया और उसे खबर मिली कि दाहाब खुशखबरी सुनाने वाली है तो उसने खुदा से दुआ की कि सब कुछ अच्छे से हो जाएं।
एक महीने बाद दाहाब ने एक बेटी को जन्म दिया तो कुछ दिन बाद घर में इसी खुशी में एक छोटा सा जलसा किया गया उसमें साबिया भी गई थी जहां उसने पहली बार दाहाब को देखा वो हसीन थी बच्ची भी मां पर गई थी उसने बच्ची को बहुत दुआएं दी और असलम को मुबारकबाद दी ।
दिन गुजरते रहे एक दिन साबिया की अम्मी ने उसे बताया कि असलम की बीवी बड़ी तेज है और वो हर वक्त अपने मियां और घर वालों से झगड़ती है और पूरे घर को उसने दोजख बना रखा है। सुनकर साबिया ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की और ख़ामोश रही।
एक दिन उसे खबर हुई कि असलम की बीवी उसे छोड़कर चली गई है सुनकर उसे बहुत अफ़सोस हुआ।एक रोज़ वो अपने शौप पर अकेली थी कि असलम उसके शौप में दाखिल हुआ,उसका तो पूरा हुलिया ही बदला हुआ था बड़ी हुई दाढ़ी बड़े हुए बाल वो काफी बीमार सा लग रहा था वो धीमें से बोला कुछ देर बैठ सकता हूं तुम्हारे पास? साबिया बोली हां हां बैठो न! असलम लगभग रोते हुए बोला वो मुझसे मोहब्बत नहीं करती साबिया न ही मेरे अम्मी अब्बू को इज़्ज़त देती है, उसे किसी का रोकना टोकना नहीं पसंद खाना भी बनातीं है तो बस अपनी पसंद का उसने कभी मुझे समझने की कोशिश ही नहीं की मैं आजिज आ गया हूं हर दिन घर में मचने वाले कोहराम से और आज तो उसने ये तक कह दिया कि वो मुझे छोड़कर जा रही है कहते कहते वो साबिया के कंधों पर सर रखकर रोने लगा। साबिया ने कसकर असलम को अपनी आगोश में भर लिया और उसे दिलासा देने लगी। काफी देर तक दोनों यूं ही एक दूसरे से लिपटे रहे फिर असलम कुछ हल्का हुआ तो साबिया ने उसे मुंह धोकर आने को कहा और उसके लिए चाय बनाई दोनों ने साथ बैठकर चाय पिया कुछ देर बातें करके असलम चला गया और साबिया भी दुकान बंद करके अपने घर चली गई।
एक महीने बाद साबिया को ख़बर मिली कि असलम और दाहाब का तलाक हो गया है। सुनकर साबिया ने मन में सोचा आखिर दाहाब ने अपनी मनमानी कर ली और अपने बसे बसाए घर को तोड़ दिया।
एक दिन साबिया रात को सोने की तैयारी कर रही थी कि असलम का फोन आया कुछ बातें करने के बाद उसने साबिया से पूछा कि क्या वो उससे निकाह करेगी? सुनकर साबिया कुछ कह न पायीं और रोने लगी। असलम ने कहा कि ठीक है तुम वक्त लो मुझे कोई दिक्कत नहीं अगर तुम्हारा जवाब न भी हुआ तो भी हम हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे। लगभग एक हफ्ते बाद असलम का फिर फोन आया तो साबिया ने हांमी भर दी।
निकाह के दिन साबिया मन में सोचने लगी कि शायद असलम की किस्मत में वो ही थी लेकिन बीच में कुछ देर के लिए आंधियों ने उन्हें घेर लिया था।
(समाप्त) लेखन समय- 3:38
दिनांक 1.5.24 - बुधवार



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