# जिन्दगी के चार दिन
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में गया था। वहां मैं जब भी जाता हूं, मेरी कोशिश होती है कि अधिक से अधिक लोगों से मुलाकात हो जाए।
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में पहुंच कर गार्ड से बात कर रहा था कि और क्या हाल है आप लोगों का, तभी मोटरसाइकिल पर एक आदमी आया और उसने झुक कर प्रणाम किया।
“भैया, प्रणाम।”
मैंने पहचानने की कोशिश की। बहुत पहचाना-पहचाना लग रहा था। पर नाम याद नहीं आ रहा था। उसी ने कहा,
"भैया पहचाने नहीं? हम बाबू हैं, बाबू। उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे।"
मैंने पहचान लिया। अरे ये तो बाबू है। सी ब्लॉक वाली आंटीजी का नौकर।
“अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो। आंटी कैसी हैं?”
बाबू हंसा,
“आंटी तो गईं।”
“गईं? कहां गईं? उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या? ठीक ही किया, उन्होंने। यहां अकेले रहने का क्या मतलब था?”
अब बाबू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने हंसना रोक कर कहा,
“भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं।”
“भगवान जी के पास? ओह! कब?”
बाबू ने धीरे से कहा,
“दो महीने...
कल अपनी पुरानी सोसाइटी में पहुंच कर गार्ड से बात कर रहा था कि और क्या हाल है आप लोगों का, तभी मोटरसाइकिल पर एक आदमी आया और उसने झुक कर प्रणाम किया।
“भैया, प्रणाम।”
मैंने पहचानने की कोशिश की। बहुत पहचाना-पहचाना लग रहा था। पर नाम याद नहीं आ रहा था। उसी ने कहा,
"भैया पहचाने नहीं? हम बाबू हैं, बाबू। उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे।"
मैंने पहचान लिया। अरे ये तो बाबू है। सी ब्लॉक वाली आंटीजी का नौकर।
“अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो। आंटी कैसी हैं?”
बाबू हंसा,
“आंटी तो गईं।”
“गईं? कहां गईं? उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या? ठीक ही किया, उन्होंने। यहां अकेले रहने का क्या मतलब था?”
अब बाबू थोड़ा गंभीर हुआ। उसने हंसना रोक कर कहा,
“भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं।”
“भगवान जी के पास? ओह! कब?”
बाबू ने धीरे से कहा,
“दो महीने...