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महामारी
रोटी की भूख और जल की प्यास अच्छों – अच्छों की दिमाग ठिकाने लगा देती है और आलम जब बेरोजगारी का हो तो फिर क्या कहना। घर की माली हालात हरिया को गांव छोड़ने के लिए मजबूर करने लगी थी। उम्र के कारण माँ की तबीयत खराब रहने लगी थी सो दवा का बोझ। दो दो बहनें जवान हो गई थी जिनकी शादी की चिंता अलग सताये जा रही थी। ऊपर से गांव में कोई काम नहीं था। हरिया ने अपने दोस्त मोहन से बात की जो दिल्ली में रह रहा था और दिहाड़ी मजदूरी कर रहा था। वह छुट्टी पर गांव आया था।

गांव से चलते समय मोहन ने हरिया को साथ ले लिया। दोनों इक्कठे दिल्ली पहुंच गये। फिर क्या, हरिया भी मोहन के साथ काम पर लग गया। पास ही एक बड़ी इमारत बन रही थी। दोनों वहीं काम करते और वहीं रहते। खाने के लिए बैजू का सड़क किनारे होटल सहारा बना।

थकान हरिया को कभी पता ही नहीं चलती, वह चौबीसों घंटे काम के लिए तैयार रहता। जरुरत थी सिर्फ वक्त पर पगार और भोजन की। हरिया की मेहनत रंग लाने लगी। वह धीरे – धीरे तरक्की के आसमां छुने लगा। कुछ ही दिनों में उसे कारखाने में नौकरी मिल गई।

कहते हैं, गरीब की उलझनें बहुत बड़ी होती है। वह एक खुशी पाता है तो दूसरी समस्या उसके...