"धरोहर"
दीनानाथ जी का भरा पूरा परिवार था। एक बेटा और एक बेटी और ख्याल रखने वाली अति सरल पत्नी। कालान्तर में उन्होंने अपने बेटे सोमित का विवाह अपने ही एक मित्र की बेटी नीलम से करा दिया,सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था मगर दीनानाथ जी में एक अति बुरी आदत थीं वो धन के मामले में बेहद कंजूस थे और जल्दी धन व्यय करना उनकों बिलकुल भी नहीं भाता था।
सोमित के विवाह में भी उन्होंने अति सीमित धन का व्यय किया था जिसके कारण सोमित का मन थोड़ा खिन्न था पर पिताजी से कहकर भी कोई फायदा तो था नहीं उन्हें तो जो करना होता था वो यही करते थे।
दीनानाथ की पत्नी कामिनी को तो अब आदत हो गई थी पति के इस आदत की और उसनें दीनानाथ जी के साथ तालमेल बैठा लिया था मगर सोमित आधुनिक जमाने का था वो ये सब कहा सहने वाला था इसलिए घर में आए दिन क्लेश होता रहता था।
देखते देखते इसी प्रकार दिन गुज़रते रहे और अब कामिनी कुछ बीमार सी रहने लगीं डाक्टर को दिखाया तो डाक्टर ने कुछ दवाएँ लिख कर दी और अब कामिनी उन दवाओं का सेवन करने लगीं मगर उसे कोई आराम नहीं हुआ दिन पर दिन उसकी हालत बिगड़ती ही रहीं और एक रात जब वो सोई तो सुबह उठ न सकीं पूरे घर में कोहराम मच गया आनन फानन में डाक्टर को बुलाया गया मगर डाक्टर ने आते ही उन्हें मृत धोषित कर दिया,सोमित का रो रो कर बुरा हाल था,एक माँ ही थी जिनकोे वो हृदयँ से स्नेह करता था और अब वो भी न रहीं।
इधर कामिनी के चले जाने से दीनानाथ जी भी बिलकुल अकेले रह गए और बस चुपचाप अपने कमरे में बैठे रहते थे और एक टक कामिनी की तस्वीर को निहारा करते थे।
समय धीरे धीरे हर जख्म भर देता है और इन्सान को आगे बढ़ना ही होता है यहाँ भी यही हुआ धीरे धीरे सब कुछ स्वत: ही सामन्य होने लगा ।
कामिनी के चले जाने से सब कुछ बदल गया मगर नहीं बदला तो दीनानाथ जी का स्वभाव जिसके कारण सोमित अब बहुत क्रोधित रहने लगा एक दिन जब सोमित ने पिताजी को घर में नयें मेहमान आने की सूचना दी तो वो प्रसन्न तो बहुत हुए मगर फिर उन्होंने ये कहके सोमित का मन खट्टा कर दिया कि नीलम को सरकारी अस्पताल में दिखाया जाए इससे खर्चा कम आएगा मगर सोमित ने दो टूक उत्तर दे दिया कि वो अपने खर्चे पर नीलम को प्राईवेट अस्पताल में दिखा देगा और दीनानाथ जी फिर खामोश हो गए।
धीरे धीरे समय गुजरता रहा और फिर नीलम ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया सोमित ने उम्मीद की थी कि पिताजी अपने पोते को कुछ सुन्दर सा उपहार देगें मगर उन्होंने अपने पोते को केवल कुछ सुन्दर खिलौने और वस्त्र ही दिए नीलम को इस समय बहुत आराम की जरूरत थी अत:सोमित ने उसे उसके मायके में भेज दिया ।
अब घर में केवल सोमित और दीनानाथ जी ही रह गए थे सोमित ने एक खाना पकाने वाली रख ली थी वही अब खाना पकाने दिया करतीं थीं मगर दीनानाथ जी की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी कि सोमित उसे रखें इस वजह से घर में रोज कलह होती रहती थी और एक दिन एक छोटी सी त्रुटि के कारण उस खाना पकाने वाली को निकाल दिया जब सोमित को ये पता चला तो उसनें अपना माथा पकड़ लिया धीरे धीरे अब हर बात पर सोमित और दीनानाथ जी की बहस होने लगी और एक दिन सोमित ने वो कह दिया जिसे सुनना किसी भी पिता को अच्छा नहीं लगेगा उसनें दो टूक अपने पिता से कहा कि अब वो इस घर में नहीं रह सकता नीलम मायके से कुछ दिनों में आने ही वालीं है वो जल्द ही कोई घर ढूंढ लेगा और दोनों वही रहने चले जायेगे सुनकर दीनानाथ जी जड़ हो गयें मगर सोमित ने अपना इरादा नहीं बदला, कुछ दिनों बाद नीलम भी आ गई नन्हा पोता अब ६ महीने का हो गया था उसे गोद में लेकर उन्होंने खूब प्यार किया ।
कुछ दिनों बाद सोमित और नीलम घर छोड़कर चले गए दीनानाथ जी अब इस घर में बिलकुल अकेले रह गए रह रह कर उन्हें अपने नन्हे पोते की किलकारियां याद आती मगर वो कर भी क्या सकते थे न वो अपना स्वभाव बदल रहें थे न सोमित अपनी जिद्द छोड़ रहा था।
देखते देखते ५ वर्ष गुज़र गए अब दीनानाथ जी को रह रह कर ये एहसास होने लगा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनकी अकूत धन संपत्ति का क्या होगा? और यही सब सोचकर वो चितिंत रहते।
एक दिन वो थोड़ा टहलने निकले तो वापसी पर अपने घर से कुछ ही दूरी पर उन्होंने कुछ बच्चों को खेलते देखा उनमें एक बच्चा दौड़ता हुआ उनके करीब आकर बोला कि उसकी गेंद उनके घर के अंदर चली गई है क्या वो ले सकता है? दीनानाथ जी ने हामी भर दी, वो बच्चा गेंद लेकर खुशी खुशी चला गया और अब तो ये रोज रोज का सिलसिला बन गया कभी उसकी गेंद गुम हो जाती तो कभी वो लुका छिपी खेलने उनके घर के बगीचे मे आकर छुप जाया करता था।
दीनानाथ भी उससे कुछ नहीं कहते थे अब वो बच्चा दीनानाथ जी से काफी घुल मिल गया था,दीनानाथ जी भी उस बच्चे को देखकर सोचा करते थे कि अब तो उनका पोता भी इतना बड़ा हो गया हो गया होगा,इधर दीनानाथ जी अपने सेहत को लेकर भी कुछ चितिंत रहा करते थे कि न जाने उन्हें कब क्या हो जाए? और एक दिन हठात् उन्होंने एक भयंकर निर्णय ले लिया अपने धन को संचित करने का,बंगाल में इसे जोकेरधन कहा जाता है जिसके तहत एक बच्चे या बच्ची को मंत्र अभिमंत्रित करके अपने धन के समुख किसी तहखाने या गुफा मे कैद कर दिया जाता है और मृत्यु पर्यन्त वो बच्चा सर्प बन उस धन की सदैव रक्षा करता है और केवल उस व्यक्ति के घर वालो को ही वो कुछ हानि नहीं करता बाकी कोई भी व्यक्ति उस धन तक नहीं पहुंच सकता।
दूसरे दिन दीनानाथ जी मिठाई का डिब्बा और कुछ जरूरत की सामाग्री लेकर घर पहुँचे और बच्चे की राह देखने लगे बच्चे के आते ही उन्होंने उसे मिठाई दी खाने को और बच्चा बहुत खुश हो गया फिर दीनानाथ जी उससे बोले चलो आज मै तुम्हें अपने घर के तलघर में ले चलता हूँ बच्चा राजी हो गया और दीनानाथ जी उसे अपनी हवेली की सीढ़ियों से उतरते हुए तलघर ले गए अब तक बच्चे की आंखे उनींदी सी होने लगी थी क्योंकि दीनानाथ जी ने उसमें नींद की दवाई मिला दी थी।
दीनानाथ जी ने उसे अपने पास बिठा लिया और धूप बत्ती जला दी और वो जोरजोर से मंत्रोच्चारण करने लगे देखते देखते कमरा पूरे धुएँ से भर गया इस बीच बच्चा मूर्छित हो गया था,काम पूरा होने के बाद दीनानाथ जी उस बच्चे को अपनी अकूत धन संपत्ति के हवाले कर तहखाने से बाहर आ गए और उन्होंने तहखाने का दरवाजा बंद कर दिया और सीढ़ियां चढ़कर वापस ऊपर आ गए ।
दिन गुजरते रहें इस बीच कई बच्चे आकर उस बच्चे को खोजते परन्तु दीनानाथ जी अन्जान बनने का अभिनय करते रहे।
इस बीच एक माह गुजर गया और एक दिन लगभग बदहवास हालत में सोमित और नीलम दौड़ते हुए उनके पास आए और बोले मेरा बेटा लगभग एक महीने से घर नहीं आया हम पागलों की तरह उसे हर जगह ढूंढते फिर रहे है इसी बीच किसी ने हमें बताया कि उसे अक्सर आपके घर पर देखा गया था,पिताजी वो आपका पोता है मेरा बेटा अंकुर बताइये वो कहाँ है पिताजी? क्या आपने उसे देखा है?.........
दीनानाथ जी मानों जड़ से हो गयें,जिस बेटे बहुं और पोते के लिए उन्होंने अपना धन संचित किया था आज उसी पोते की बलि दे दी उन्होंने उसके धरोहर के लिए.................. (समाप्त)
लिखित समय-- (11:25) शुक्रवार
@Deep4318
© Deepa🌿💙
सोमित के विवाह में भी उन्होंने अति सीमित धन का व्यय किया था जिसके कारण सोमित का मन थोड़ा खिन्न था पर पिताजी से कहकर भी कोई फायदा तो था नहीं उन्हें तो जो करना होता था वो यही करते थे।
दीनानाथ की पत्नी कामिनी को तो अब आदत हो गई थी पति के इस आदत की और उसनें दीनानाथ जी के साथ तालमेल बैठा लिया था मगर सोमित आधुनिक जमाने का था वो ये सब कहा सहने वाला था इसलिए घर में आए दिन क्लेश होता रहता था।
देखते देखते इसी प्रकार दिन गुज़रते रहे और अब कामिनी कुछ बीमार सी रहने लगीं डाक्टर को दिखाया तो डाक्टर ने कुछ दवाएँ लिख कर दी और अब कामिनी उन दवाओं का सेवन करने लगीं मगर उसे कोई आराम नहीं हुआ दिन पर दिन उसकी हालत बिगड़ती ही रहीं और एक रात जब वो सोई तो सुबह उठ न सकीं पूरे घर में कोहराम मच गया आनन फानन में डाक्टर को बुलाया गया मगर डाक्टर ने आते ही उन्हें मृत धोषित कर दिया,सोमित का रो रो कर बुरा हाल था,एक माँ ही थी जिनकोे वो हृदयँ से स्नेह करता था और अब वो भी न रहीं।
इधर कामिनी के चले जाने से दीनानाथ जी भी बिलकुल अकेले रह गए और बस चुपचाप अपने कमरे में बैठे रहते थे और एक टक कामिनी की तस्वीर को निहारा करते थे।
समय धीरे धीरे हर जख्म भर देता है और इन्सान को आगे बढ़ना ही होता है यहाँ भी यही हुआ धीरे धीरे सब कुछ स्वत: ही सामन्य होने लगा ।
कामिनी के चले जाने से सब कुछ बदल गया मगर नहीं बदला तो दीनानाथ जी का स्वभाव जिसके कारण सोमित अब बहुत क्रोधित रहने लगा एक दिन जब सोमित ने पिताजी को घर में नयें मेहमान आने की सूचना दी तो वो प्रसन्न तो बहुत हुए मगर फिर उन्होंने ये कहके सोमित का मन खट्टा कर दिया कि नीलम को सरकारी अस्पताल में दिखाया जाए इससे खर्चा कम आएगा मगर सोमित ने दो टूक उत्तर दे दिया कि वो अपने खर्चे पर नीलम को प्राईवेट अस्पताल में दिखा देगा और दीनानाथ जी फिर खामोश हो गए।
धीरे धीरे समय गुजरता रहा और फिर नीलम ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया सोमित ने उम्मीद की थी कि पिताजी अपने पोते को कुछ सुन्दर सा उपहार देगें मगर उन्होंने अपने पोते को केवल कुछ सुन्दर खिलौने और वस्त्र ही दिए नीलम को इस समय बहुत आराम की जरूरत थी अत:सोमित ने उसे उसके मायके में भेज दिया ।
अब घर में केवल सोमित और दीनानाथ जी ही रह गए थे सोमित ने एक खाना पकाने वाली रख ली थी वही अब खाना पकाने दिया करतीं थीं मगर दीनानाथ जी की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी कि सोमित उसे रखें इस वजह से घर में रोज कलह होती रहती थी और एक दिन एक छोटी सी त्रुटि के कारण उस खाना पकाने वाली को निकाल दिया जब सोमित को ये पता चला तो उसनें अपना माथा पकड़ लिया धीरे धीरे अब हर बात पर सोमित और दीनानाथ जी की बहस होने लगी और एक दिन सोमित ने वो कह दिया जिसे सुनना किसी भी पिता को अच्छा नहीं लगेगा उसनें दो टूक अपने पिता से कहा कि अब वो इस घर में नहीं रह सकता नीलम मायके से कुछ दिनों में आने ही वालीं है वो जल्द ही कोई घर ढूंढ लेगा और दोनों वही रहने चले जायेगे सुनकर दीनानाथ जी जड़ हो गयें मगर सोमित ने अपना इरादा नहीं बदला, कुछ दिनों बाद नीलम भी आ गई नन्हा पोता अब ६ महीने का हो गया था उसे गोद में लेकर उन्होंने खूब प्यार किया ।
कुछ दिनों बाद सोमित और नीलम घर छोड़कर चले गए दीनानाथ जी अब इस घर में बिलकुल अकेले रह गए रह रह कर उन्हें अपने नन्हे पोते की किलकारियां याद आती मगर वो कर भी क्या सकते थे न वो अपना स्वभाव बदल रहें थे न सोमित अपनी जिद्द छोड़ रहा था।
देखते देखते ५ वर्ष गुज़र गए अब दीनानाथ जी को रह रह कर ये एहसास होने लगा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनकी अकूत धन संपत्ति का क्या होगा? और यही सब सोचकर वो चितिंत रहते।
एक दिन वो थोड़ा टहलने निकले तो वापसी पर अपने घर से कुछ ही दूरी पर उन्होंने कुछ बच्चों को खेलते देखा उनमें एक बच्चा दौड़ता हुआ उनके करीब आकर बोला कि उसकी गेंद उनके घर के अंदर चली गई है क्या वो ले सकता है? दीनानाथ जी ने हामी भर दी, वो बच्चा गेंद लेकर खुशी खुशी चला गया और अब तो ये रोज रोज का सिलसिला बन गया कभी उसकी गेंद गुम हो जाती तो कभी वो लुका छिपी खेलने उनके घर के बगीचे मे आकर छुप जाया करता था।
दीनानाथ भी उससे कुछ नहीं कहते थे अब वो बच्चा दीनानाथ जी से काफी घुल मिल गया था,दीनानाथ जी भी उस बच्चे को देखकर सोचा करते थे कि अब तो उनका पोता भी इतना बड़ा हो गया हो गया होगा,इधर दीनानाथ जी अपने सेहत को लेकर भी कुछ चितिंत रहा करते थे कि न जाने उन्हें कब क्या हो जाए? और एक दिन हठात् उन्होंने एक भयंकर निर्णय ले लिया अपने धन को संचित करने का,बंगाल में इसे जोकेरधन कहा जाता है जिसके तहत एक बच्चे या बच्ची को मंत्र अभिमंत्रित करके अपने धन के समुख किसी तहखाने या गुफा मे कैद कर दिया जाता है और मृत्यु पर्यन्त वो बच्चा सर्प बन उस धन की सदैव रक्षा करता है और केवल उस व्यक्ति के घर वालो को ही वो कुछ हानि नहीं करता बाकी कोई भी व्यक्ति उस धन तक नहीं पहुंच सकता।
दूसरे दिन दीनानाथ जी मिठाई का डिब्बा और कुछ जरूरत की सामाग्री लेकर घर पहुँचे और बच्चे की राह देखने लगे बच्चे के आते ही उन्होंने उसे मिठाई दी खाने को और बच्चा बहुत खुश हो गया फिर दीनानाथ जी उससे बोले चलो आज मै तुम्हें अपने घर के तलघर में ले चलता हूँ बच्चा राजी हो गया और दीनानाथ जी उसे अपनी हवेली की सीढ़ियों से उतरते हुए तलघर ले गए अब तक बच्चे की आंखे उनींदी सी होने लगी थी क्योंकि दीनानाथ जी ने उसमें नींद की दवाई मिला दी थी।
दीनानाथ जी ने उसे अपने पास बिठा लिया और धूप बत्ती जला दी और वो जोरजोर से मंत्रोच्चारण करने लगे देखते देखते कमरा पूरे धुएँ से भर गया इस बीच बच्चा मूर्छित हो गया था,काम पूरा होने के बाद दीनानाथ जी उस बच्चे को अपनी अकूत धन संपत्ति के हवाले कर तहखाने से बाहर आ गए और उन्होंने तहखाने का दरवाजा बंद कर दिया और सीढ़ियां चढ़कर वापस ऊपर आ गए ।
दिन गुजरते रहें इस बीच कई बच्चे आकर उस बच्चे को खोजते परन्तु दीनानाथ जी अन्जान बनने का अभिनय करते रहे।
इस बीच एक माह गुजर गया और एक दिन लगभग बदहवास हालत में सोमित और नीलम दौड़ते हुए उनके पास आए और बोले मेरा बेटा लगभग एक महीने से घर नहीं आया हम पागलों की तरह उसे हर जगह ढूंढते फिर रहे है इसी बीच किसी ने हमें बताया कि उसे अक्सर आपके घर पर देखा गया था,पिताजी वो आपका पोता है मेरा बेटा अंकुर बताइये वो कहाँ है पिताजी? क्या आपने उसे देखा है?.........
दीनानाथ जी मानों जड़ से हो गयें,जिस बेटे बहुं और पोते के लिए उन्होंने अपना धन संचित किया था आज उसी पोते की बलि दे दी उन्होंने उसके धरोहर के लिए.................. (समाप्त)
लिखित समय-- (11:25) शुक्रवार
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