...

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मां तुम कहां ?चली गई,,
मेरी प्यारी डायरी ,, क्यों? ना ,आज एक पत्र लिखे मां के नाम,,

डायरी क्या? तुम जानती हो मां
कहा है ,, वो क्यों? चली गई मुझे
छोड़ के,,

ना जाने क्यों? कहते है लोग
की मेरी मां तारा बन गई,,

अब तू ही बता डायरी कि भला
कोई इंसान तारा कैसे बन सकता है,,

कैसे संभव है ये,,

मां क्यों? नहीं बताती मुझे अपना
पता क्या? डायरी मां मुझसे नाराज़
है,,

क्या? वो भी मुझे करती याद है ,,

उफ़ डायरी तुम तो कुछ बोलती ही
नहीं,,

क्या? राज़ है दफन घर की इन चार
दिवारी में खोलती क्यों? नहीं,,

मां क्या? आप तक पहुंच रही मेरी
आवाज़ है,, लौट आओ ना मां

आपके बिना मुझे रातों को नीद
नहीं आती अब भी चौक जाती

हूं मै हल्की सी आहट से,, अब भी जब
अंधेरे से डरती हूं तेरी साड़ी कि

आंचल की छाए में ही छुपती हूं,,

अब भी मां मै तेरी वहीं नासमझ
सी बच्ची हूं जो अनजान है

इस दुनिया के छलावे से ,, बेखबर है
मतलब के दिखावे से,,

मां डर लगता है कहीं खो ना जाऊं
अंधेरे में गुमशुदा हो ना जाऊ,,

इससे पहले कि लड़खलाए क़दम
मेरे मां आकर मुझे संभाल लो,,

बहुत जरूरत है आपकी इस
मुस्कान को मां आपकी ज़रा उस

खुदा से दो पल की ही सही पर
मुझसे मिलने की मोहलत माग लो


वादा करती हूं मां ज्यादा परेशान ना करुगी,, चुपचाप तेरी गोदी में सर
रखकर लेटी रहूंगी ,,

बसा लूगी तुझे अपने ख्वाबों में
फिर नजरो से दूर ना करुगी,,

छोड़कर जाए तू मुझे इतना
मजबुर ना करुगी,,

मां उस खुदा से कह दे ना मुझे भी
तारा बना दे तेरी तरह कम से कम

उसी बहाने मै तेरे साथ तो रहूंगी,,


कुछ भी लिख दिया दोस्तो जो मन में आया शब्द तलाश कर तो नहीं लिखे
पर दिल से लिखे है ये मेरे जज़्बात है
जो अल्फ़ाज़ बनकर निकले है,,,,,,,




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