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स्त्री के त्याग की आत्मकथा
इस कहानी का सार है समाज में धर्म के नाम पर जाति के नाम पर धन के नाम पर स्त्री की सुंदरता के नाम पर
द्वापर से लेकर आज तक चली आ रही है
यह अपमानजनक स्थिति स्त्री के जीवन में हमेशा बनी रहती है
स्त्री को हमेशा से अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है
स्त्री जमीन पर जन्म लेती वैसे ही मुसीबतें उसको चारों तरफ से घेर लेती हैं
इस बात के उदाहरण सीता अनसूया पार्वती सती अहिल्या झांसी की रानी गार्गी नान्गेली आदि
मनुष्य का जीवन त्याग प्रेम की मूरत होता है
इसलिए मनुष्य को त्याग करना पड़ता है
लेकिन आज की नारी विकसित तो हो गई लेकिन अपनी मान मर्यादा संस्कृति भूल गई
आज की स्त्री ने अब स्त्री जाति पर हो रहे अत्याचार को सहना बंद कर दिया है
अब स्त्री किसी क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं है हर एक स्त्री झांसी की रानी इंदिरा गांधी है
लेकिन आज के समय में मनुष्य स्त्री को विलासिता के समान समझता है
इस कलयुग में दिन प्रतिदिन गाय के समान भोली वाली स्त्री कन्या का शोषण किया जा रहा है
दिन प्रतिदिन अनेक मां अपनी कोख में ही अपनी बच्ची को मार डालती हैं
समाज में बढ़ते अत्याचार को देखकर मेरी रूह कांपती हैं
कभी-कभी मैं सोचती हूं यह कैसा संसार है कैसी दुनियादारी यहां पर कोई भी स्त्री जात को सम्मान देना ही नहीं चाहता जहां पर लक्ष्मी रूपी स्त्री का अपमान होता है
वह स्थान वह नगर वह तीर्थ संकट की तरफ मुड़ जाता है एक पल में ही गिरने वाला मिट्टी का ढेर बन जाता है

* जहां स्त्री का सम्मान नहीं
वह जगह नहीं एक खंडहर है!


* नारी लक्ष्मी स्वरूपा जो ना समझे
वह शूकर हैं !
© Mamta